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आधार पर बैंगनी रंग की यह विशेषता है कि उसमें किंचित लाली भी होती है, अर्थात् अशुभवृत्तियों की गहन कालिमा में प्रकाश का एक कण उद्भूत होता है। अतः एक अपेक्षा से आध्यात्मिक विकास की दिशा में उठा यह प्रथम चरण है।
आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार बैंगनी रंग उपरी मस्तिष्क को पोषण देने वाला रंग है। 122
कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति को अपना ध्यान इस प्रकार केन्द्रित करना चाहिए कि गहन अंधकार में प्रकाश की किरण का उद्भव हो रहा है, जिससे वह काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो रहा है। कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति की साधना कृष्ण वर्णी दुष्प्रवृत्तियों के शोधन के लिए होती है। जब कृष्ण लेश्या वाला व्यक्ति ऐसा ध्यान करता है, तो उसकी दुर्भावनाएँ अंशतः कम होती हैं। इसलिए काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो रहा है, ऐसा ध्यान करना चाहिए।
___ नीला रंग – नील लेश्या वाला व्यक्ति कृष्ण लेश्या वाले से कुछ कम क्रूर होता है, पर इसका रंग भी ध्यान करने योग्य नहीं है, किन्तु –“योग की अपेक्षा से लेश्याध्यान का साधक काले रंग का परिमार्जन करता हुआ बैंगनी और बैंगनी से कापोत वर्ण पर अपना ध्यान केन्द्रित करता हुआ आध्यात्मिक विकास में किंचित प्रगति करता है।123
. नील लेश्या वाला व्यक्ति कृष्ण से कुछ ठीक होता है। उसे मन की पूर्ण शांति तो नहीं मिलती, पर शारीरिक स्वस्थता जरूर प्राप्त होती है, जो कहीं-ना-कहीं मानसिकता पर भी प्रभाव डालती है। नीले रंग का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए कि वह हरे रंग में बदल जाए।
कापोत रंग – “आधुनिक विज्ञान ने कापोत रंग के स्थान पर हरा रंग माना है।124 वस्तुतः यह रंग भी ध्यान करने योग्य तो नहीं है, पर काले व नीले
122 प्रेक्षाध्यान : लेश्या ध्यान, पृ. 23 12 जैन योग-साधना - आत्मारामजी, पृ.340 124 वही - पृ. 341
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