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________________ मनोवैज्ञानिक शारीरिक रसायनों में होने वाले असामान्य परिवर्तनों को ही तनाव कहते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने चित्त या मन को एक काल्पनिक सत्ता ही माना है, किन्तु मानसिक अनुभूतियों के स्तर पर हम तनाव को चित्त या मन की अवस्था विशेष से पृथक नहीं कर सकते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से चित्त विचलन ही तनाव है। अतः तनाव की व्याख्या और उसके निराकरण के उपायों की चर्चा मात्र दैहिक आधार पर न करके मानस--मनोविज्ञान के आधार पर करना होगी। चाहे आज मनोविज्ञान प्राणी व्यवहार का विज्ञान हो, किन्तु वस्तुतः वह मानव मन का ही विज्ञान है। प्रायोगिक स्तर पर हम मनोवैज्ञानिक स्थितियों को भी दैहिक आधार पर ही पकड़ पाते हैं, किन्तु यह सत्य है कि चैतसिक अनुभूति के स्तर पर हम चित्त या मन की सत्ता को नकार नहीं सकते, चाहे प्रायोगिक आधार पर उसे पकड़ा नहीं जा सकता हो। प्लेटो ने भी मन का अस्तित्व बताते हुए कहा है कि -"मन में प्रेम, तृष्णा, वासना आदि संवेग होते हैं ।"38 मन को प्रयोगशाला में चाहे न पकड़ा जा सकता हो, किन्तु प्रत्येक स्वसंवेदनशील व्यक्ति अपने मन की अवस्था एवं वृत्तियों को जानता है। अतः आज तनावों और उनके कारणों का विश्लेषण दैहिक आधार पर न करके चैतसिक मनोविज्ञान के आधार पर भी करना होगा। मन या चित्त चाहे हमारी प्रयोगशाला में न पकड़े जा सके हों, किन्तु अनुभव के स्तर पर हर व्यक्ति उन्हें जानता है। वस्तुतः आज हम विज्ञान के आधार पर जिसे तनाव के रूप में व्याख्यायित कर रहे हैं वह न तो तनाव का हेतु है और न तनावपूर्ण अवस्था है, क्योंकि तनाव एक चैत्तसिक स्थिति है, जिसे प्रयोगशाला में देखा नहीं जा सकता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों की भूल यह है कि वे तनाव की दैहिक अवस्था को ही तनाव मान रहे हैं। जो लोग शरीर में होने वाले दैहिक असामान्य रासायनिक परिवर्तन को ही तनाव कहते हैं, वे भी सत्य से अपरिचित ही हैं। 38 मनोविज्ञान की पद्धति एवं सिद्धांत, डॉ. जे.डी. शर्मा, पृ. 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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