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________________ ____320 मिलता है। उत्तराध्ययनसूत्र में लिखा है कि मान पर विजय प्राप्त होने पर वह असातावेदनीयकर्म नहीं बांधता है तथा पूर्व में बंधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है।" असातावेदनीयकर्म तनाव उत्पन्न करता है, अतः तनावमुक्ति के लिए मान पर विजय प्राप्त करना चाहिए। माया-विजय के उपाय - 1. 'सोही उज्जूय भूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई-92 अर्थात् ऋजुभूत सरल व्यक्ति की ही शुद्धि होती है और सरल हृदय में ही धर्म रूपी पवित्र वस्तु ठहरती है। शुद्धि का अर्थ ही सहजता या सरलता है, अतः ऐसा चिन्तन करने से माया पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 2. झूठ, छल, कपट कभी नहीं टिकता, एक दिन सभी के समक्ष आ ही जाता है और यथार्थ स्वरूप का पता चलने पर दूसरे तो दुःखी होते ही हैं, हम भी तनावग्रस्त हो जाते है, ऐसा विचार निरन्तर करते रहना चाहिए। 3. यह विचार करना चाहिए कि माया-कषाय अनन्त दुःखों (तनावों) का कारण है और तिर्यंच-गति का हेतु है।93 4. माया जब उजागर होती है तो व्यक्ति पर से सभी अपना विश्वास खो देते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप जब उसे किसी की मदद आवश्यकता होती है, तो कोई मदद नहीं करता। इस विचार से स्वयं चिन्तन करने से माया या कपट करने से डर लगने लगेगा। माणं विजएण वेयणिज्ज कम्मं न बंधई। पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। - उत्तराध्ययनसूत्र - 29/69 उत्तराध्ययनसूत्र -3/12 माया तिर्यग्योनस्य – तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-6, सूत्र-17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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