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________________ उपर्युक्त सूत्रों को अपनाने से क्रोध तो शांत होगा ही क्रोध के साथ-साथ तनाव भी उत्पन्न नहीं होगा। क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन व हिंसक बनाता है। क्रोध शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति, सम्यक्त्वगुण, स्मरण शक्ति, प्रीति, सहनशीलता का नाश करता है। उत्तराध्ययनसूत्र में तो यहाँ तक लिखा है कि अपने-आप पर भी क्रोध मत करो। अतः तनावमुक्ति के लिए क्रोध मनोवृत्ति का त्याग आवश्यक है । 85 मान - विजय के उपाय 1. दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि मान विनय का नाश करने वाला है7, अतः मान पर विजय मृदुता अर्थात् विनम्रता से प्राप्त की जा सकती है 188 86 चाहिए | क्षमा ही क्रोधाग्नि को शान्त कर सकती है। क्षमा संयमरूपी उद्यान को हरा-भरा बनाने के लिए क्यारी है। 85 12. क्रोध आने पर मौन धारण करें। 13. क्रोध में एक गिलास ठंडा पानी पी लें । 14. पानी से अग्नि शांत हो जाती है, अतः कोई अगर हम पर क्रोध करे तो उस पर क्रोध न करके उसे नरमी से बात करें, सामने वाले व्यक्ति का क्रोध शांत हो जावेगा । 88 क्रोधवह्येस्तदह्याय शमनाय शुभात्सभिः । श्रयणीया क्षमैकैव संयामारामसारणिः । योगशास्त्र - 4 / 11 'उत्तराध्ययनसूत्र 29/40 - 87 माणं मद्दवया जिणे • दशवैकालिकसूत्र - 8/38 माणो विणयणासवो – दशवैकालिकसूत्र - 8/38 Jain Education International 318 - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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