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________________ अर्थात् तृष्णा से मुक्त होना होगा। इसी प्रकार अपनी चेतना को प्रतिकूल के वियोग की चिंता अर्थात् आर्त्तध्यान से मुक्त रखना होगा, क्योंकि तनाव का कारण वस्तु की अनुभूति ही नहीं, उस अनुभूति के परिणामस्वरूप अनुकूल की पुनः - पुनः प्राप्ति की और प्रतिकूल के वियोग की चिंता ही तनाव का मूलभूत कारण है, अतः तनावमुक्ति के लिए इन दोनों से ऊपर उठना आवश्यक है। 315 कषाय - विजय और तनावमुक्ति कषाय और तनाव के सह सम्बन्ध का हम इसके पूर्व चतुर्थ अध्याय में विवेचन कर चुके हैं। यहाँ हम कषाय - विजय अर्थात् कषायमुक्ति की चर्चा करेंगे। वस्तुतः कषाय- - मुक्ति से ही तनावमुक्ति सम्भव है। जैनदर्शन में कषाय को कर्मबन्धन का एवं कर्मबन्धन को संसार भ्रमण का हेतु माना गया है। संसार में जन्म-मरण का चक्र ही समस्त दुःखों का कारण है। दूसरे शब्दों में कहें तो कषायमुक्ति ही दुःखमुक्ति का मूल आधार है और यह सांसारिक दुःख या तनाव से मुक्ति के हेतु कषाय मुक्ति आवश्यक है। दूसरे शब्दों में दुःखमुक्ति या तनावमुक्ति के लिए कषायमुक्त होना आवश्यक है। जैनदर्शन के अनुसार कषायमुक्त जीव ही मोक्ष को प्राप्त करता है। मोक्ष तनावमुक्ति की ही एक अवस्था है। कषाय को हम व्यक्ति के तनावयुक्त होने की अवस्था की अभिव्यक्ति भी कह सकते हैं। कषाय की इन वृत्तियों से ही तनाव की उत्पत्ति भी होती है। एक ओर जहाँ क्रोध और अहंकार को तनाव की एक अवस्था कहते हैं, वहीं दूसरी ओर मान, माया और लोभ को तनाव की स्थिति के साथ-साथ तनाव के कारण भी बताए गए हैं, अतः तनावमुक्ति के लिए तनाव की स्थिति और तनाव का निराकरण करना आवश्यक है। इस प्रकार जैन आगमों में कषाय-विजय को सभी दुःखों से मुक्ति का उपाय भी बताया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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