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________________ 304 को समझना होगा कि यह किस प्रकार हर क्षेत्र में विवादों के मध्य एक समन्वय स्थापित करता है। अनेकान्तवाद और तनावमुक्ति - . शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामंजस्य को अपने जीवन में उतारे। जीवन के विविध आयामों में समायोजन स्थापित करे। विविध पक्षों में सम्यक् समायोजन ही अनेकांतवाद है और यही तनावप्रबंधन की प्रक्रिया भी है। अनेकांत एक समग्र एवं समायोजन पूर्ण जीवनदृष्टि है। इस अनेकांत दृष्टि का उपयोग अति प्राचीनकाल से होता आ रहा है। जैन साहित्य में आचारांग अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ है। इसमें कहा गया है कि -"जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा तो आसवा"59, अर्थात् जो आस्रव (बंधन) के कारण हैं, वे ही निर्जरा (मुक्ति) के कारण भी बन सकते हैं और जो निर्जरा (मुक्ति) के कारण हैं, वे ही आस्रव (बंधन) के कारण भी बन सकते हैं। महावीर का कथन उसी अनेकान्त दृष्टि का परिचायक है। तनाव प्रबन्धन की दृष्टि से हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जो तनाव के हेतु हैं, वे ही तनावमुक्ति के हेतु बन जाते हैं और जो तनावमुक्ति के हेतु हैं वे ही तनाव के कारण बन जाते हैं। जैसे सम्पत्ति की प्राप्ति हमें तनावमुक्त भी करती है और तनावग्रस्त भी बनाती है। भगवतीसूत्र में जब भगवान् महावीर से पूछा गया कि –सोना अच्छा है या जागना ? तो उन्होंने कहा -“पापियों का सोना अच्छा है और धार्मिकों का जागना अच्छा है। 60 इस प्रकार अनेकांतवाद सापेक्षिक दृष्टि से विरोधों को समाप्त करने का एक माध्यम है। दैनिक जीवन में तनाव प्रबंधन के लिए अनेकांतवाद के व्यवहारिक पक्ष को अपनाना होगा। अनेकांत के इस व्यवहारिक पक्ष को सर्वप्रथम · 59 आचारांग - 60 भगवतीसूत्र - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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