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________________ होने वाले विषाद (दुःख) को ही तनाव कहा है। भारतीय दार्शनिकों ने इसी विषाद को दुःख कहा है। तनावो के प्रकार एवं उनके परिणाम - ___ हेन्ससेली ने तनाव के दो प्रकार बतायें हैं 2- सकारात्मक तनाव एवं नकारात्मक तनाव। हर स्थिति चाहे वह सकारात्मक तनाव की हो या नकारात्मक तनाव की हो, सामंजस्य बिठाने की जरूरत तो पड़ती ही है। कुछ पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने तो कहा ही है कि -जहाँ हमारी इच्छाओं या मांगो के साथ समझौता करना पड़े वह तनावपूर्ण स्थिति है। जैनधर्म के अनुसार सकारात्मक तनाव को शुभ आस्रव एवं नकारात्मक तनाव को अशुभ आस्रव कह सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति ने मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी ली है तो उस हेतु सामग्री आदि मंगवाना, कार्य पूर्ण करवाना आदि की चिन्ता भी उसे तनावग्रस्त बनायेगी किन्तु यह सकारात्मक तनाव होगा, किन्तु इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति अपना घर बनवाता है और उसके लिए लायी गई सामग्री में कोई नुकसान हो जाता है तो वह दुःख करता है, चिंता करता है तो यह तनाव नकारात्मक तनाव कहा जाएगा। सकारात्मक तनाव में तनाव होते हुए भी आत्म शांति पूर्णतः भंग नहीं होती किन्तु नकारात्मक तनाव में विलाप, क्षोभ आदि के साथ आत्मशांति भी भंग हो जाती है। चिंता, दोनो में ही है किन्तु एक चिंता में नींद खराब नहीं होती है और दूसरी में नींद खराब होती है। पुनः दूसरे तनाव में नींद नहीं आने से भी तनाव तीव्र होता है। सकारात्मक तनाव में चिन्ता कम होती है जबकि नकारात्मक तनाव में चिन्ता अधिक होती है। एक अन्य दृष्टि से सकारात्मक तनाव उत्कर्ष का हेतु होता है, जबकि नकारात्मक तनाव विनाश का हेतु होता अन्य अपेक्षा से तनाव को तीन वर्गों में बाटा गया है33 32 Abnormal Psychology and modern life 11" edition Page - 14 33 Abnormal Psychology and Modern life Page - 145 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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