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एवं योग साधना द्वारा चित्त-निरोध के लिए या तनावमुक्ति के लिए जैन साधना पद्धति में एक सरल प्रक्रिया दी गई है, जो निम्न है -
ध्यान में सर्वप्रथम मन को वासना रूपी विकल्पों से मोड़कर धर्म-चिन्तन में लगाया जाता है, फिर क्रमशः आत्म सजगता के द्वारा इस चिन्तन की प्रक्रिया को शिथिल किया जाता है। अन्त में एक ऐसी स्थिति आ जाती है, जब मन पूर्णतः निष्क्रिय हो जाता है, उसकी भागदौड़ समाप्त हो जाती है। इस स्थिति में उसकी तनावों को जन्म देने की क्षमता समाप्त हो जाती है और व्यक्ति शांति एवं आनंद की अनुभूति करता है। यह अनुभूति ही पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है।
आर्त और रौद्र ध्यान तनाव के हेतु तथा धर्म और शुक्ल ध्यान से तनावमुक्ति -
इसके पूर्व ध्यान और योग साधना में हमनें ध्यान के महत्त्व एवं ध्यान की प्रक्रिया का विवेचन किया है। ध्यान के आलम्बन तो अनेक हो सकते हैं, किन्तु ध्यान किसका किया जाए ? ध्यान का कौन सा आलम्बन तनाव को अधिक बढ़ा देगा और कौनसा तनावमुक्ति का सम्यक् साधन बनेगा ? इस प्रश्न का उत्तर हमें ध्यान के प्रकारों को समझने से मिल सकता है। जैनधर्म के अनुसार ध्यान के चार प्रकार बताए गए हैं 12 - 'चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा - अट्टेझाणे, रोद्देझाणे, धम्मेझाणे, सुक्केझाणे' -अर्थात् आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान ।
सामान्यतया आर्तध्यान व रौद्रध्यान को तनाव का हेतु और धर्मध्यान, शुक्लध्यान को तनावमुक्ति का साधन माना गया है। वस्तुतः जो ध्यान मन में
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(1) तत्त्वार्थसूत्र-9/29ए (2) स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, 1/60 (3) औपपातिकसूत्र-30 (4) पडिक्कमामि चउहिं झाणेहिं -अटेणंझाणेण, रूदेणझाणेणं, धम्मेणंझाणेणं, सुक्केणं झाणेण - आवश्यक श्रमणसूत्र
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