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साधक की दृष्टि आत्मकेन्द्रित हो जाती है, जो वस्तुएं बाहरी है, उनसे साधक के चित्त में विरक्ति हो ही जाती है, वह अपने मनोभावों को भी अपना नहीं मानता, सिर्फ अपने आत्मिक गुणों को ही अपना भानता है।
शेष अनुप्रेक्षाएँ भी इसी तरह हमारे ममत्व या रागभाव को समाप्त कर हमें तनावमुक्ति या मोक्ष की दिशा में ले जाती है।
कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग शब्द का शाब्दिक अर्थ है शरीर का उत्सर्ग करना, लेकिन जीवित व्यक्ति शरीर का त्याग कर दे तो वह जीवित ही नहीं रहेगा। यहां पर शरीर त्याग से तात्पर्य शरीर और आत्मा के भेद विज्ञान के द्वारा शरीर के प्रति ममत्व के त्याग से है। शरीर और आत्मा के भेद विज्ञान के द्वारा शरीर के प्रति ममत्व बुद्धि का त्याग करना कायोत्सर्ग है, क्योंकि यही ममत्व बुद्धि तनावों का मुख्य कारण है। कायोत्सर्ग का प्रयोग तनावमुक्ति का प्रयोग है। कायोत्सर्ग शरीर में रहे हुए तनाव और ममत्व से होने वाली मानसिक अशांति को दूर करता है। कायोत्सर्ग का मूल अर्थ तो शरीर के प्रति ममत्व का परित्याग है। ममत्व के विसर्जन से तद्जन्य तनाव का विसर्जन होता हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से शरीर के प्रति ममत्व के त्याग का अर्थ है, शरीर से आत्मा का भेद-विज्ञान।
_ डॉ. सागरमलजी के शब्दों में -"किसी सीमित समय के लिए शरीर के ऊपर रहे हुए ममत्व का परित्याग कर शारीरिक क्रियाओं की चंचलता को समाप्त करने का, जो प्रयास किया जाता है वही कायोत्सर्ग है। 63
आचार्य भद्रबाहु आवश्यकनियुक्ति में शुद्ध कायोत्सर्ग के संबंध में प्रकाश डालते हुए लिखते है कि "चाहे कोई भक्तिभाव से चन्दन लगाए, चाहे कोई द्वेषवश वसूले से छीले, चाहे जीवन रहे, चाहे उसी क्षण मृत्यु आ जाए, परन्तु जो
63. जैन बोद्ध गीता का तुलनात्मक अध्ययन पृ.-404
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