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11. बोधि दुर्लभ अनुप्रेक्षा ___ 12. धर्म अनुप्रेक्षा
__इन बारह में प्रथम चार अनुप्रेक्षाओं का वर्णन ठाणांग सूत्र में भी मिलता है। ठाणांग में धर्म ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं कही है, यथा -- एकत्वानुप्रेक्षा, अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा और संसारानुप्रेक्षा"58 1. अनित्यानुप्रेक्षा :-- शरीर की अनित्यता और मृत्यु की अनिवार्यता बताते हुए भगवान् महावीर ने आचारांग में लिखा है -"यह शरीर अनित्य और अशाश्वत है। इसका चय–अपचय होता रहता है, इसका स्वभाव ही विनाश और विध्वंस
है 59
व्यक्ति जब शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाता है, तो उसका मन विचलित हो जाता है। सभी कामनाएँ शारीरिक ही होती है। शारीरिक कामनाएँ ही तनाव उत्पत्ति का कारण हैं। अनुप्रेक्षा द्वारा शरीर की अनित्यता को जाना जाता है। इससे उसके प्रति ममत्व कम हो जाता है। अनुप्रेक्षा से यह ज्ञात होता है कि यह शरीर मरणशील है। आचारांग में कहा गया है -"यह शरीर क्षण-प्रतिक्षण मृत्यु की ओर जा रहा है 60
शरीर के यर्थाथ स्वरूप को जानने वाला शरीर के प्रति आसक्ति का त्याग कर देता है और जहां आसक्ति का त्याग होता है वहां तनाव का भी त्याग हो जाता है।
2. अशरण अनुप्रेक्षा – व्यक्ति की यह कमजोरी है कि वह दूसरों पर निर्भर होता है। दूसरे की शरण में स्वयं को सुरक्षित समझता है, किन्तु यह उसकी मिथ्या धारणा है, जो उसे तनावग्रस्त बना देती है। अशरण अनुप्रेक्षा का मूल मर्म है स्वयं की शरण में आना। मेरा कोई रक्षक नहीं है, मेरा कोई शरण प्रदाता नहीं है, कोई मेरा नाथ (स्वामी) नहीं, इस अनुप्रेक्षा के साथ मन-मस्तिष्क को
58. ठांणाग सूत्र - 4/1/247 59. आचारांग सूत्र - 5/2/509 60. आचारांग सूत्र - 2/2/239
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