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________________ _198 श्वास के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करती है, जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ देते हैं। मन की शंति ही तनावमुक्ति है। एक मन को साधने से सब सिद्ध हो जाता है। मन चिड़िया की तरह है, जब भी पकड़ने का प्रयास करेंगे, हाथ से उड़ जाएगी, किन्तु मन को पकड़ पाना नामुमकिन भी नहीं है। क्योंकि आत्मा सजग होते ही यह पकड़ में आ जाता है। श्वास का प्राण से और प्राण का मन से गहरा संबंध है। मन को सीधा नहीं पकड़ सकते है। प्राण धारा को भी सीधा नहीं पकड़ सकते है। इसलिए मन को पकड़ने के लिए शान्त करने के लिए श्वास का संयम आवश्यक है। "श्वास प्रेक्षा में श्वास के प्रति सजग चित्त की एकाग्रता श्वास संयम को प्रकट करती है। जिससे मन की शांति के साथ-साथ कषाय भी उपशांत और चैतन्य का जागरण होता है।40 श्वास के प्रति सजग भाव की क्रिया ही श्वास-प्रेक्षा है। श्वास-प्रेक्षा के दो प्रयोग है:1. दीर्घश्वासप्रेक्षा और 2. समवृत्तिश्वासप्रेक्षा। दीर्घ श्वास प्रेक्षाः इसमें श्वास की गति को मन्द करें। धीरे-धीरे लम्बा श्वास लें और धीरे-धीरे छोड़े। श्वास को लयबद्ध और समतल करें। यह दीर्घश्वासप्रेक्षा है। “समवृत्ति श्वास प्रेक्षा - इस प्रक्रिया में बाएं नथुने से श्वास लें, दाएं से निकाले फिर दांए से ले बाएं से निकालें।"41 यह समवृत्तिश्वासप्रेक्षा है। 'महावीर का स्वास्थ्यशास्त्र' नाम पुस्तक में आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा है - "भगवान् महावीर नासाग्र पर ध्यान करते थे। 42 इसका अर्थ यही है कि वे भी श्वास-प्रश्वास देखते थे। हमारे चित्ता का नासन के भाग पर स्थिर कर श्वास प्रेक्षा करने से मन किसी अन्य प्रवृत्तियों में नहीं जाएगा। श्वास का अनुभव करें 40. प्रेक्षा एक परिचय- मुनि किशनलाल -पृ. 13 41. प्रेक्षा ध्यान प्रयोग पद्धति आचार्य महाप्रज्ञ प्र. 13 42. महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र- आचार्य महाप्रज्ञ-पृ.71 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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