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________________ 190 खड़े रहने वाले आसनों में मुनि किशनलालजी ने समपादासन को उत्तम बताया है। जैन ग्रंथों में इसे ही दंडासन या खडगासन कहे गये है। दंडासन का वर्णन औपपातिक सूत्र में मिलता है। इसमें दडे की तरह स्थिर खडे रहना होता है।" खडगासन में भी सीधे खडे रहना होता है। - दशाश्रुतस्कंध में बैठे हुए आसनों में "निषधासन, गोदुहासन और उत्कुटकासन का भी उल्लेख मिलता है।2 निषधासन में पालथी लगा कर पर्यकासन से सुखपूर्वक बैठा जाता है। गोदुहासन में पूरे शरीर को दोनों पांवों के पंजों पर रखा जाता है। जंघा एवं उरू आपस में मिले हुए रहते हैं और दोनों नितम्ब एड़ी पर टिके हुए रहते है। ___ उत्कुटकासन में दोनो पांवों को सममतल रख कर उन पर पूरे शरीर को रखते हुए बैठना होता है। आचार्य महाप्रज्ञजी के अनुसार इसी को वज्रासन भी कहते है। दशश्रुतस्कंध में ही सोकर करने वाले आसनों में उत्तानासन, दंडासन, पार्वासन, ओर लकुटासन का वर्णन है। उत्तानासन आकाश की तरफ मुख करके साने को कहते है। दंडासन खड़े व सो कर दोनों तरह से किया जाता है। जिस प्रकार दंड को सीधा जमीन पर रखें, उसी प्रकार सीधे लेट जाना दंडासन है। पार्वासन एवं लकुटासन में करवट लेकर सोना होता है। . दशाश्रुतस्कंध में ऐसे भी आसनों का उल्लेख है जो न तो बैठकर किये जाते है न सोकर किये जाते है और न सीधे खड़े होकर किये जाते हैं, किन्तु बैठने तथा खड़े रहने के मध्य की अवस्था के हैं। पहले वीरासन में पूरा शरीर दोनों पंजों के आधार पर तो रखना पडते हैं किन्तु इसमें नितम्ब एड़ी 20. प्रगाध्यान आसन प्राणायाम- मुनि किशनलाल पृ. 42 21. औपपातिक सूत्र सु. 19 मधुकरमुनि पृ. 55 22. दशाश्रुतस्कंध सातवी दशा, मधुकरमुनि पृ. 65 23. दशाश्रुतस्कंध सातवी दशा, मधुकरमुनि पृ. 65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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