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________________ है। इस आसन में पानी पर मत्स्य के सदृश स्थिर रहा जा सकता है। नाक पानी से ऊपर रहता है । अतः डूबने की स्थिति नहीं बनती। तैराक योगी इस आसन में घण्टों पानी में पड़े रहते है । 2 - Jain Education International 3 विधि पद्मासन की स्थिति में बैठें। लेटने की मुद्रा में आने के लिए हाथों की कुहनी को धीरे-धीरे पीछे ले जाएं। पीठ पीछे झूकेगी। कुहनियों के सहारे शरीर को टिकाते हुए लेटने की मुद्रा में आ जाएँ। हाथों की हथेलियां कंधों के पास स्थापित कर पीठ और गर्दन को ऊपर उठाएं । मस्तक का मध्य भाग भूमि से सटा रहेगा। हाथ वहां से उठाएँ। बाएँ हाथ से दाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें और दाएँ हाथ से बाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें। कमर का हिस्सा भूमि के ऊपर रहेगा। आंख खुली रहेगी । 188 समय और श्वास यह आसन सर्वागासन और हलासन का विपरीत आसन है। सर्वांगासन का पूर्व लाभ मत्स्यासन करने से ही मिलता है। श्वास प्रश्वास दीर्घ एवं गहरा रखें। जितना समय सर्वांगासन में लगाएँ उसका आधा समय इसमें लगाएँ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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