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ओर अग्रसर होता है। पूर्णतः तनावमुक्त अवस्था ही मोक्ष की प्राप्ति है, अतः उसके प्रयत्न उस दिशा में होते हैं। 6. शुक्ल लेश्या -
शुक्ल-लेश्या होने पर व्यक्ति पूर्णतः तनावमुक्त अवस्था में होता है। हम यह भी कह सकते हैं कि तनावमुक्त अवस्था तभी प्राप्त होती है, जब व्यक्ति शुक्ल लेश्या में प्रवेश कर लेता है। __यह मनोभूमि परमशुभ मनोवृत्ति है। इस लेश्या से युक्त व्यक्ति के जीवन का व्यवहार इतना मृदु होता है कि वह अपने हित के लिए दूसरों को तनिक भी कष्ट नहीं देना चाहता। उसकी मानसिक स्थित बहुत ही शांत एवं संतुलित रहती है। कैसी भी परिस्थिति आए, उसका सामना अपने आत्मविश्वास, सहनशीलता और बिना मन को विचलित किए समझदारी से करता है। वह न तो स्वयं ही तनावग्रस्त होता है और न दूसरों को ही तनावग्रस्त बनाता है। वह मन-वचन- कर्म से एकरूप होता है तथा उसका उन तीनों पर नियंत्रण होता है। 125 जिसका इन तीनों योगों पर नियंत्रण हो, वह योगी होता है। योगी ही तनावमुक्त अवस्था को प्राप्त करता है। शुक्ललेश्या वाला व्यक्ति सदैव स्वधर्म एवं स्वस्वरूप में निमग्न रहता है।126 पक्षपात न करना, भोगों की आकांक्षा न करना, सब में समदर्शी रहना, राग-द्वेष तथा ममत्व से दूर रहना शुक्ल लेश्या के लक्षण हैं।” जैनदर्शन के अनुसार तनाव का मूल कारण राग-द्वेष हैं। इस लेश्या वाला व्यक्ति राग-द्वेष से पूर्णतः मुक्त रहता है। जिसने तनाव उत्पत्ति के मूल हेतुओं का क्षय कर दिया वह पूर्णतः तनावमुक्त होता है और उसकी लेश्या शुक्ल लेश्या होती है।
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125 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग.1, डॉ.सागरमल जैन, पृ.516 . 126 उत्तराध्ययनसूत्र – 34/31-32 127 गोम्मटसार जीवकाण्ड - 517
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