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________________ और मनोभाव के होने पर इन भौतिक सूक्ष्म संरचनाओं का निर्माण होता है, जिसे हम द्रव्य लेश्या कहते हैं । द्रव्य लेश्या का सम्बन्ध शरीर से है। अगर शारीरिक संरचना में असंतुलन होता है तो उसका असर मन पर भी पड़ता है, क्योंकि द्रव्य मन भी एक प्रकार की शारीरिक संरचना है, अतः वह भी असंतुलित अथवा विचलित हो जाता है। अतः द्रव्य लेश्या से मनोभाव बनते हैं और मनोभावों से द्रव्य लेश्या । इसका उदाहरण हम पूर्व में दे चुके हैं। वैसे तो द्रव्य लेश्या के बिना भाव लेश्या और भाव लेश्या 2. भाव -- लेश्या के बिना द्रव्य लेश्या नहीं होती। दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं, फिर भी भावलेश्या का स्वरूप द्रव्य लेश्या से बिल्कुल भिन्न है । "जहाँ द्रव्य लेश्या पौद्गलिक वर्गनाएँ हैं, वहाँ भावलेश्या चैत्तसिक परिणमन है। 109 जिस प्रकार वर्णों के आधार पर छः लेश्याओं का विभाजन किया गया है उसी प्रकार मनोभाव के स्तर के अनुसार भी उन छः लेश्याओं के पौद्गलिक स्वरूप को समझाया गया है। जैसे भावलेश्या का आवेगों के अपेक्षा तीव्रतम, तीव्रतर तीव्र, मन्द, मन्दतर और मन्दतम स्तर होगा, वैसा ही व्यक्ति के मानसिक तनावों का स्तर होगा । — मनोभावों की अशुभ से शुभ की ओर या तनावों की तीव्रता से मन्दतम की ओर बढ़ने की स्थितियों के आधार पर ही उन लेश्याओं के विभाग किए गए हैं । “उत्तराध्ययनसूत्र में निम्न छह लेश्याओं के नाम वर्णित हैं 110 1. कृष्ण, 2. नील, 3. कापोत, 4. तेज, 5. पद्म, 6. शुक्ल 109 'लेश्या और मनोविज्ञान उत्तराध्ययनसूत्र 110 अब हम पृथक्-पृथक रूप से इन छह लेश्याओं का तनाव के साथ क्या सह-सम्बन्ध है, इसकी चर्चा करेंगे। विविध लेश्याएँ और तनाव 1. कृष्ण लेश्या : Jain Education International 34/3 भू. 159 - डॉ. शान्ता जैन, पृ. 39 -- For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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