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________________ 149 ही इस मनोवृत्ति को छोड़ते हैं। ऐसे व्यक्ति को कितना भी समझाया जाए पर लोभ की चाह उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है और जब लोभ का परिणाम सामने आता है तब उसे लोभ के दुर्गुणों की अनुभूति होती है। इस प्रकार जब लोभ से व्यक्ति को तनाव उत्पन्न होता है तो वह तनावमुक्ति की ओर अग्रसर होता है। प्रत्याख्यानी लोभ - इस लोभ को कीचड़ के धब्बे की उपमा दी गई है। जिस प्रकार प्रयत्न करने से कीचड़ साफ हो जाता है, उसी प्रकार दिन-रात मन को समझाने के प्रयत्न करने से जो व्यक्ति अपनी लोभवृत्ति छोड़ दे, तो वह प्रत्याख्यानी लोभ के स्तर पर आ जाता है, अर्थात् उसको तनाव तो होता है, किन्तु प्रयास करने पर वह तनावमुक्त स्थिति को भी प्राप्त कर सकता है। संज्जवलन लोभ - जो लोभ निमित्त मिलने पर पल भर में शांत हो जाए या नष्ट हो जाए, वह संज्वलन लोभ है। संज्वलन लोभ को हल्दी के लेप की उपमा दी गई है। जिस प्रकार हल्दी का लेप शीघ्रता से साफ हो जाता है, उसी प्रकार शीघ्रता से दूर हो जाने वाला लोभ तद्जन्य तनाव को भी शीघ्रता से दूर कर देता है। इस प्रकार लोभ कषाय भी तनाव का ही कारण है। लोभ की वृत्ति आने पर वह बढ़ती ही जाती है। लोभ की यह मनोवृत्ति मन को मलिन कर देती है, बुद्धि को नष्ट कर देती है और तनाव उत्पन्न करती है, अतः तनावमुक्ति के लिए लोभ कषाय का त्याग करना आवश्यक है। इच्छाएं और आकांक्षाए - तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष हैं। इन राग-द्वेष भाव से ही व्यक्ति में इच्छाओं या आकांक्षाओं का जन्म होता है। वस्तुतः अभिलाषा, तृष्णा, चाह, कामना आदि इच्छा के ही पर्यायवाची शब्द हैं, किन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इनमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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