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________________ 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. कुल मद जिस कुल में सुसंस्कार, सम्पन्नता, विशिष्टता होती है, वह कुल श्रेष्ठ कहलाता है। ऐसे कुल में जन्म लेने पर अहंकार करना कुल मद कहलाता है। रूप मद बल मद है । श्रुत मद तप मद - अपने ज्ञान का अहंकार करना ज्ञान या श्रुत मद है । अपनी तपस्या पर गर्व करना तप मद है । लाभ मद योग प्रबल होते हैं, जिससे व्यक्ति को पग-पग पर उपलब्धियाँ, ऋद्धियाँ या धन-वैभव मिलता रहता है, इन पर घमण्ड करना लाभ मद है । — -- ऐश्वर्य मद कहलाता है। 73 शारीरिक सौन्दर्य का अहंकार करना रूप मद है। अपने शौर्य या ताकत (शक्ति) का अहंकार करना बल मद Jain Education International 139 - उपर्युक्त आठों मद व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं। उनके मन में यह भय होता है कि कहीं कोई हमसे श्रेष्ठ न आ जाए। अपनी श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए सदैव चिंतित रहता है, दूसरों की निन्दा करना, उन्हें नीचा दिखाना, स्वयं का गुणगान करना आदि अनुचित व्यवहार है । ऐसे घमण्ड में चूर व्यक्ति के समक्ष जब कोई उससे भी अधिक श्रेष्ठ व्यक्ति आ जाता है, तो उसे गहरा आघात पहुंचता है, जो उसे तनावग्रस्त बना देता है । मान कषाय के निम्न पर्यायवाची शब्द हैं दर्प उत्तेजनापूर्ण अहंभाव अर्थात् गर्व में चूर होकर क्रोध पूर्वक दुष्ट कार्य करना दर्प है। मैं अतुल वैभव सम्पन्न हूँ, ऐसा अभिमान ऐश्वर्य - मद 73 कषाय: एक तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 28 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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