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________________ 123 समवायांगसूत्र, विशेषावश्यकभाष्य आदि में भी कषाय के चार प्रकार बताए हैं - क्रोध, मान, माया, लोभ। ये चार प्रधान कषाय हैं और इन प्रधान कषायों के सहचारी भाव अथवा उनकी सहयोगी मनोवृत्तियाँ नोकषाय कही जाती हैं। यह भी कह सकते हैं कि ये कषाय के कारण एवं परिणाम दोनों हैं। नोकषाय से कषाय उत्पन्न होते हैं। कषाय की उत्पत्ति के कारण जिन नोकषाय को कहा गया है, वे निम्न हैं:1. हास्य - सुख की अभिव्यक्ति हास्य है। यह मान का कारण है। जब अहंकार बढ़ जाता है तो दूसरों पर हँसी आती है और इस अहंकार से क्रोध भी उत्पन्न हो जाता है। 2. शोक - इष्ट वियोग और अनिष्टयोग से सामान्य व्यक्ति में जो मनोभाव जाग्रत होते हैं, वे शोक कहे जाते हैं। जिस वस्तु या व्यक्ति की हमें चाह हो और वह नहीं मिले तो हम दुःखी हो जाते हैं, और जिस व्यक्ति, वस्तु की चाह नहीं है और मजबूरी में हमें उसे ग्रहण करना पड़े तो भी हमें दुःख का अनुभव होता है और यही शोक हमें तनाव में ले जाता है। यह भी क्रोध का कारण है। रति - इन्द्रिय-विषयों में चित्त की अभिरतता ही रति है। वर्तमान युग में अधिकतर लोग इन्द्रियों के वश में होते हैं, जो इन्द्रियों की रूचि है, वही मिलने की चाह करते हैं। इन्द्रियों के विषयों की जब पूर्ति नहीं होती तो हम तनाव में घिर जाते हैं और इन्द्रियों की जरूरत को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर हो जाते हैं, फिर चाहे उससे हानि ही क्यों न उठानी पड़े। रति के कारण ही आसक्ति व लोभ की भावनाएँ प्रबल होती हैं। 49 समवाओ/समवाय -4/सूत्र-1 50 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा-2985 कर्मग्रंथ -भाग-1, गाथा 21-22 52 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा-2985 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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