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जैन आगम साहित्य में कषायों की विस्तार से चर्चा भगवतीसूत्र और कर्म साहित्य के ग्रंथों में मिलती है। आगे इन दोनों ग्रन्थों के आधार पर उन्हें स्पष्ट
करेंगे ।
भगवतीसूत्र में कषायों की चर्चा एवं तनाव
भगवतीसूत्र में कषायों की चर्चा करते हुए उनके विभिन्न पर्यायवाची नाम दिए गए हैं। उसमें चारों कषायों के पयार्यवाची नाम निम्नरूप से उपलब्ध होते हैं- भगवतीसूत्र में क्रोध के निम्न दस समानार्थक नाम दिए हैं
आवेग की उत्तेजनात्मक अवस्था क्रोध है ।
1. क्रोध 2. कोप क्रोध से उत्त्पन्न स्वभाव की चंचलता कोप है। यह चित्तवृत्ति प्रणय और ईर्ष्या से उत्पन्न होती है। भगवतीवृत्ति के अनुसार क्रोध के उदय को अधिक सघन अभिव्यक्ति न देकर उसे दीर्घकाल तक बनाए रखना कोप है। 37 इस अवस्था में व्यक्ति मन ही मन तनावग्रस्त होता जाता है।
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3. रोष
शीघ्र शांत नहीं होने वाला क्रोध रोष है। 38 रोष आने पर व्यक्ति लम्बे समय तक तनावग्रस्त रहता है, क्योंकि इस अवस्था में क्रोधाभिव्यक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है। 4. दोष
स्वयं पर या दूसरे पर दोष थोपना ।
कुछ व्यक्ति क्रोध अवस्था में अपना दोष दूसरे पर थोपकर उसे भी तनावग्रस्त कर देते हैं।
'भगवतीसूत्र, श. 12, उ. 5, सू.2
37 भगवतीसूत्र, अभयदेवसूरि वृत्ति, श. 12, उ.5, सू.2
38 वही, अभयदेवसूरि वृत्ति, श. 12, उ.5, सू. 2
39 वही,
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अक्षमा दूसरों के अपराध को सहन न करना अक्षमा है। 4° जैसे कोई धुले हुए कपड़ों पर पैर रखकर निकल जाए तो तुरन्त उसे थप्पड़ या
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