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जैनदर्शन में जहां कषाय को कर्म-बंध का हेतु एवं दुःख का कारण ' बताया है, वहीं मनोवैज्ञानिकों ने उसे तनावग्रस्तता का कारण बताया है।
तनाव का सम्बन्ध हमारे मन से है, किन्तु मन में ऐसा क्या है, जो व्यक्ति के जीवन को तनावयुक्त बना देता है ? मन का स्वभाव है, चंचलता और चंचलता का कारण है कषाय-वृत्तियां। कषाय वृत्तियों के चार स्तर कहे गए हैं -अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्जवलन। ये चार स्तर ही तनाव के भी स्तर हैं।
कषाय की चार वृत्तियाँ हैं -क्रोध (आवेश), मान (अहंकार), माया (कपटवृत्ति) और लोभ। ये कषाय की वृत्तियाँ राग-द्वेष से उत्पन्न होती हैं और मन विचलित कर देती हैं। कषाय रूपी वृत्तियाँ चित्त को कैसे विचलित करती हैं यह जानने से पूर्व हमें कषाय के प्रकारों को जानना होगा। स्थानांगसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि -पापकर्म (तनाव) की उत्पत्ति के दो स्थान हैं –राग-द्वेष । राग से लोभ का और लोभ से माया का जन्म होता है, दूसरी ओर द्वेष से क्रोध का और क्रोध से मान का जन्म होता है।
कषाय
लोभ
क्रोध
माया
मान वैसे क्रोध का निमित्त लोभ और मान भी होते हैं। अहंकार पर चोट पड़ने पर या लोभ की पूर्ति में बाधा होने पर भी क्रोध आता है। इसी प्रकार मिथ्या अहंकार के पोषण हेतु भी मायाचार किया जाता है। अतः सापेक्ष रूप से इन चारों में अन्तः सम्बन्ध है।
अ) स्थानांगसूत्र- 2/4 ब) नि.चू-132 माया -लोभेहिंतो रागो भवति। कोह – माणेहिंतो दोसो भवति।।
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