SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100 देहात्मा बुद्धि और मिथ्यात्व से युक्त होता है। यह अवस्था आत्मा की संसार में अनुरक्तता की या उसकी विभाव-दशा की सूचक है ओर विभाव-दशा ही तनावयुक्त दशा है, अतः तनावमुक्ति के लिए सर्वप्रथम बहिरात्मा के लक्षण व स्वरूप को समझकर उन्हें त्यागना आवश्यक है, क्योंकि जो बहिरात्मा के लक्षण हैं, वे ही तनाव के मुख्य कारक हैं। उन कारक तत्त्वों को समझकर त्यागने से ही व्यक्ति साधक बन सकता है और साधना से परमात्मा की अवस्था को प्राप्त कर सकता है। जैनदर्शन के अनुसार तनाव का मुख्य कारण पर-पदार्थों में राग-द्वेष भाव रखना है, यह तनावयुक्त अवस्था में होता है, क्योंकि यदि वांछित वस्तु उपलब्ध नहीं है तो उसकी प्राप्ति की चाह से तनाव उत्पन्न होगा। यदि वह प्राप्त है तो उसका वियोग न हो इसकी चिन्ता रहेगी। ऐसी आत्मा की तनावयुक्त अवस्था को ही बहिरात्मा कहते हैं, क्योंकि जैन आचार्यों के अनुसार जो सांसारिक विषयभोगों में रत रहते हैं और पर-पदार्थों में अपनेपन का आरोपण कर राग-द्वेष का भाव रखते हैं, उन्हें ही बहिरात्मा कहा जाता है। साध्वी प्रियलताश्री ने भी अपने शोध-प्रबन्ध में शोध कर यही वर्णित किया है कि -“जो सांसारिक विषयभोगों में रत रहते हैं और उन्हें ही अपने जीवन का अन्तिम लक्ष्य समझते हैं और उन पर-पदार्थों में अपनेपन का आरोपण कर उनके भोग में जो आसक्त बने रहते हैं, उन्हें ही बहिरात्मा कहा जाता है। चाहे बहिरात्मा हो या आत्मा की तनावयुक्त अवस्था हो, दोनों का ही स्वरूप एवं लक्षण व्यक्ति की जीवनदृष्टि पर ही आधारित होते हैं। जो अपनी आत्मा के शुद्ध स्वरूप को भूलकर इन्द्रिय, मन और बाह्य पदार्थों को अपना मानती है, वही बहिरात्मा है और जो इन इन्द्रियों के विषयों आदि में आसक्त होकर उन से उत्पन्न कामनाओं को पूर्ण करने में ही अपने जीवन का यापन करते हैं, एवं उसी में भ्रान्तिवश सुख का अनुभव करते हैं, वस्तुतः यह व्यक्ति की 2 मोक्खपाहुड - 5, 8, 10, 11 त्रिविध आत्मा की अवधारणा - साध्वी प्रियलताश्री, पृ. 179 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy