SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ तप मक्खन को तपाने के लिए पहले तपेले को तपाना होगा। देह-दण्डन ही तपश्चर्या नहीं है, अपितु ज्ञानपूर्वक आत्मशोधन के लिए की गई साधना भी तपश्चर्या ही है। तपस्या का उद्देश्य मन एवं विचारों की विशुद्धता है । तप शरीर को निचोड़ना नहीं है, अपितु स्वास्थ्य-लाभ का ही एक अनुष्ठान है। तप की मौलिकता को ठुकराना नहीं चाहिये। शानप्रो-शौकत से जीना हमारी संस्कृति भले ही बने, किन्तु उनके उपयोग में अपनाई जाने वाली सीमा हमें अशान्ति से दूर रखेगी। ___ जीवन की प्रत्येक प्रतिकूल स्थिति में भी स्वयं को संतुलित बनाए रखना ही तपस्या की व्यावहारिकता है। तप-ताप ___ दुःख बुद्धि से दुःख को ग्रहण करना ताप है और सुख बुद्धि से दुःख को ग्रहण करना तप है । तपःसमाधि साधनागत जीवन में आने वाली आपदाओं से उद्विघ्न न होना तपः समाधि है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy