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________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ ११ प्राचार्य वह व्यक्ति प्राचार्य है, जिसका आचरण स्वस्थ विचारों का प्रतिबिम्ब है। आत्म-उपलब्धि आनन्दमय आत्मा की उपलब्धि विकल्पात्मक विचारों और तर्कों से नहीं हो सकती। आत्म-कथा अनेकों की आत्म-कथा पढ़ने की बजाय अपनी एक आत्म-कथा पढ़ो। वह तुम्हें अतीत की खबर देगी और सुनहरे भविष्य के लिए संकेत । आत्म-कर्तृत्व आनन्द की निष्पत्ति भी स्वयं मनुष्य करता है और तनाव की अनुस्यूति भी हमारी अपनी ही कृति है। जीवन भी आत्म-कर्तृत्व है और जगत भी आत्म-कर्तृत्व । अच्छाबुरा जो कुछ भी है, सब अपना ही प्रतिबिम्ब है। प्रात्म-च्युति अपने व्यक्तित्व की मौलिकताओं से चूक जाना स्वयं जीवन के प्रति अपनाई जाने वाली बेइमानी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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