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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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अहम् - बोध
जहाँ मन का बिखराव शान्त होता है, वहीं अहम् का बोध समग्र हो जाता है ।
अहसान
किसी पर उपकार करने के बाद अपने अहसान के बोझ से उसे दबाना उपकार का गला घोंटना है ।
ग्रहसास
स्वयं के होने का बोध तो अन्धेरे में भी रहता है और अन्धे को भी । ज्योतिर्मय और दृष्टि सम्पन्न वही है, जिसे दूसरों की उपस्थिति और उनके अधिकारों का भी अहसास है ।
अहोभाव
परमात्मा हमारे अहोभाव में पुलकित है । भावनाओं में पलने वाली भक्ति की खुमारी ही उससे प्रेम है । परमात्मा से किया जाने वाला प्रेम अपने लिए प्रभु की सेवा है, विश्व के लिए अहिंसा और करुणा उस प्रेम से सहजतया प्रगट हो जाता है ।
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