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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
अपेक्षा
अपेक्षाएँ रखना मानव का स्वभाव है, किन्तु उपेक्षित होने के बावजूद उद्विग्न न होना जीवन में क्षमा का सौहार्द है ।
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ग्रपेक्षा - उपेक्षा
मनुष्य को अपनी अपेक्षाएँ दूसरों की बजाय स्वयं से रखनी चाहिये । अपेक्षाएँ उपेक्षित होनी सम्भावित है । किन्तु उपेक्षित अपेक्षाएँ मनुष्य के लिए वातावरण को कलुषित और असन्तुलित बनाती है ।
अप्राप्ति
वह व्यक्ति परमात्मा को कैसे पाएगा, जो जवानी संसार को सौंपता है और बुढ़ापा परमात्मा को ।
अभिनय
सत्य को दबाना और असत्य के लिए जूझना जीवन का अभिनय है ।
अभिलाषा
उस अभिलाषा को प्रणाम है, जिसमें मातृभूमि के प्रति समर्पित होने की आतुरता हो ।
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