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३. मैं अपनी आजीविका की शुद्धता को बनाये रखूंगा । झूठ - फरेब और मेल-मिलावट न करने की प्रतिज्ञा करते हुए सच्चाई और ईमानदारी से वांछित साधनों का अर्जन करूंगा।
४. घर में ऐसा माहौल बनाये रखूंगा कि घर भी स्वर्ग जैसा सुन्दर - सुखद हो । फिर चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी 'त्याग' क्यों न करना पड़े ।
५. औरों के सुख-दुःख में काम आऊंगा । नेकी करूंगा और भूल जाऊंगा ।
आत्म-शुद्धि के ये चरण मानव - मुक्ति के लिए हैं, मनुष्य के देवता बनने के लिए हैं । हमारी दृष्टि, हमारे आचार-विचार सम्यक् और पवित्र हों, तो जीवन मानवीय भगीरथ द्वारा धरती पर लायी गई स्वर्गागन्तुक गंगा है । सुख-शांति और प्रेम का सागर, रत्नाकर !
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