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________________ विविधता है । कोई स्त्री के रूप में जन्म ले रहा है तो कोई पुरुष के रूप में, कोई रोगी कोई निरोगी, कोई प्रतिभावान अथवा जड़बुद्धि, आखिर इन सब के पीछे हमारे द्वारा अतीत में बटोरे गये कर्मों की ही भूमिका है। कर्म कोई एक जन्म की कहानी नहीं है । यह जन्म-जन्म की कहानी है । किसी की आंख में यह मुस्कान है तो किसी की आंख में पानी । Jain E पूर्वजन्म के कर्म जीव के पुनर्जन्म का कारण बनते हैं। शुभ कर्मों का फल शुभ होता है और अशुभ कर्मों का फल अशुभ । कर्म की सजा से बचा नहीं जा सकता। हर मनुष्य को तक़दीर की मार झेलनी ही पड़ती है । बेहोशी अथवा सम्मूर्छित दशा में कर्म-नियति से गुजरे, तो कर्मों का कभी निरोध नहीं होने वाला। यह दलदल और फैलता चला जाएगा । पुराने कर्म अपनी भोग्य - दशा में और नये कर्मों का सृजन करवा लेंगे । जो बोध एवं जागरूकता के साथ अपनी कर्मवृत्तियों का साक्षी है उसे कर्मों की चिनगारियां जला नहीं सकतीं । प्रगाढ़ कर्मों को जिये बगैर मिटाया नहीं जा सकता । पर हाँ ! उनके प्रति तटस्थ तो रहा ही जा सकता है। तटस्थता, साक्षीभाव, दृष्टाभाव ही मनुष्य को अपनी कर्म-नियति से मुक्त करने में सबसे बड़ा मददगार होता है । भीतर के शिखर पर बैठा साक्षी निष्कर्म है, निस्तरंग है। शान्त, परितृप्त और मौन है। यह हमारा एक सुखद सौभाग्य है कि हमें अपने पूर्व जन्म की स्मृति नहीं है । जब इस एक जन्म की पूरी स्मृति रखनी कठिन हो रही है और जो है, वह भी इतनी चिंता और घुटन दे रही है कि अगर हमें पूर्व जन्मों की भी स्मृति रहती पूर्वजन्म : पूनर्जन्म / ३२ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003968
Book TitleAntargruha me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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