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भगवत्ता फैली सब ओर
योग में श्वांस-पथ के जरिये देह से विचारों में प्रवेश किया जाता है। प्राणायाम, देह से परास्थिति है। विचार, शरीर से गहरी परत है। विचारों की, संस्कारों की, धारणाओं की कितनी गहरी पर्ते जमीं है हमारे भीतर । विचारों की यात्रा अनथक चालू रहती है। दिन हो या रात विचार हमें चौबीस घण्टे घेरे रहते हैं। खायो, पियो, उठो, सोयो, कुछ भी करो, विचारों की परिधि तो हर समय अपना घेरा बांधे रखती है। विचारों की उच्छृखलता समाप्त करने के लिये ही तो नाम-स्मरण और मंत्र-जाप का मूल्य है।
कभी ध्यान दिया ? कि हम विचारों और शब्दों में कितना जीते हैं। शब्द न भी उचारो तब भी चुप कहाँ हो । जो चेहरा तुम्हें शांत दिखायी देता है, क्या कभी पता किया कि उसका मन कितना बड़बड़ा रहा है। विचार तो शांत नहीं है और तुम जाकर बैठे हो हिमालय में, संस्कार हैं संसार के और प्रासन है गुफा में, यह कैसा विरोधाभास पाल रहे हो? गुफा में जाकर बैठने मात्र से मन का मिमियाना बन्द नहीं होगा। विचारों को पढ़ने और समझने से विचारों के प्रति
आसक्ति टूटेगी। इसलिए कभी अकेले में बैठकर अपने विचारों को ठीक वैसे ही पढ़ने की कोशिश करना जैसे किसी दूसरे का चरित्र पढ़ते हो।
शरीर और विचार की अगली परत है—'मन'। मन वह है जो अभी तक विचार नहीं बना है। मन, बीज है।
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