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पकड़ का छूटना संन्यास की पहल
___ मनुष्य के संसार का बन्धन बड़ा रहस्यपूर्ण है। यह बड़ा दिलचस्प प्रश्न है कि संसार से मुक्ति कैसे हो। मुक्ति तो उससे पायी जाती है जिसने बांध रखा हो। भला संसार को क्या पड़ी है कि वो बांधे रखे। संसार तो तुम्हारी मुक्ति चाहता है। उसने तो पिंजरे का दरवाजा खोल दिया है । तुम ही उड़ नहीं रहे हो, तो इसमें संसार क्या करे ।
वास्तव में संसार ने नहीं बांध रखा है। वरन् तुमने ही संसार को पकड़ रखा है, इसलिए संसार से मुक्त होने के लिए संसार की पकड़ छोड़ो। आखिर मकान को तुमने पकड़ रखा है, मकान ने तुम्हें नहीं। धन तुम्हारे पीछे नहीं है वरन् तुम धन के पीछे लगे हुए हो। मकान गिरेगा तो तुम रोप्रोगे, तुम्हारे गिरने से मकान नहीं रोयेगा। पकड़ के सूत्रधार तुम स्वयं हो। इसलिए कृपया, यह मत पूछो कि संसार से मुक्त कैसे हों। समाधान इस बात का चाहो कि पकड़ से मुक्त कैसे हों।
तुम तो मुक्त ही हो। खम्भे को पकड़ कर यह मत पूछो कि मुक्त कैसे हों ! जैसे इसे पकड़ा है वैसे इसे छोड़ दो, यही मुक्ति का मार्ग है। पुरानी कहानियाँ कहती हैं कि तब लोगों के प्राण स्वयं में न होकर किसी और में हुआ करते थे। कभी-कभी ऐसा हुआ करता कि किसी आदमी पर सौ तलवारों के वार के बावजूद उसे मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि उसके प्राण स्वयं में नहीं, वरन् किसी तोते में होते। अगर तोते की गर्दन मरोड़ दो तो आदमी अपने आप मर जाता है । पहले जमाने में तोतों' में प्राण अटके रहते थे। अब 'तोतों' का स्थान तिजोरियों' ने ले लिया है। तिजोरी में धन बढ़ा
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