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________________ भगवत्ता फैली सब ओर भावनाओं का संयम। मन में किसी के प्रति बुरा सोचा, असंयम हो गया। किसी के प्रति क्रोध का भाव आया, असंयम हो गया। हमने किसी को चांटा नहीं मारा मगर मन में सोच लिया कि उसे चांटा मारू, तो हिंसा हो गई समझो। मूल में भावना है। एक डॉक्टर ने अपने मरीज के इलाज के दौरान उसकी नाड़ी काटी, दुर्योग से उस मरीज की मृत्यु हो गई, तो डॉक्टर खूनी हो गया क्या? नहीं ! डॉक्टर की भावना तो उसकी जान बचाने की थी, उसके मन में मरीज की हत्या के भाव नहीं थे। वह मर गया तो, इसमें डॉक्टर दोषी नहीं कहलाएगा। दूसरी ओर एक आदमी किसी को मारने के लिए जहर पिला देता है। वह आदमी पहले से बीमार था। संयोग से जहर से उसका पुराना रोग कट गया और वह स्वस्थ हो गया। दुनिया तो कहेगी कि उस आदमी ने दवा पिलाई मगर ज्ञानी की नजरों में तो उसने मारने का प्रयास किया, दोष तो उसे लग गया। किसी काम के पीछे की भावना ही उसके अच्छे और बुरे का फैसला करती है। विचार, भाव ही तो कार्यरूप में परिणित होते हैं । जीसस ने कहा था-'प्रभु के राज्य में बच्चे ही प्रवेश पा सकेंगे।' यहाँ बच्चे का अर्थ, केवल 'बच्चा' नहीं है। 'बच्चा' वह जो निष्कलंक है, पाप से दूर है। उसमें क्रोध, कषाय, छल-कपट नहीं होता। 'बच्चा' कहने का अर्थ यही है कि आदमी उन गुणों से भरा है। आदमी को अपने बाहर और भीतर के अन्तर को मिटाना है। यह खोखलापन तभी दूर होगा जब आदमी के ज्ञान और श्रद्धा में साम्य होगा। असली 'चरित्र' भी वहीं पैदा होगा। इनमें साम्य नहीं होगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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