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________________ अज्ञान की स्वीकृति-ज्ञान की पहली किरण २५ इसके विपरीत बड़े लोगों में से बहुत कम ऐसे होते हैं, जो ज्ञान मांगते हैं। अधिकांश लोग तो धन चाहते हैं। बच्चों को ज्ञान चाहिए, बड़ों को धन चाहिए, यही फर्क है। इसी का नाम तो भटकाव है। बड़ों से बच्चे अच्छे हैं, जो आशीर्वाद मांगते हैं ताकि ज्ञान मिले। इसलिए बड़ा आदमी ज्ञानी के पास जाकर भी खाली हाथ लौट आएगा, जबकि बच्चा कुछ पाकर लौटेगा। बच्चा साधु से वही चीज मांग रहा है जो साधु के पास है। वह अपने अनुभव, अपना ज्ञान ही अपने पास आने वालों को देगा। उसके पास धन तो है नहीं। साधु के पास तो असली 'धन' उसका ज्ञान और अनुभव ही है। वह ज्ञान दे सकता है, अपने अनुभव से आपको लाभान्वित कर सकता है। गीता में कहा है.---'ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुतेर्जुनः' ज्ञान एक चिंगारी है जो अज्ञान को दूर कर देती है। हमारे भीतर का अज्ञान, कषाय सब समाप्त कर देती है। थोड़ा सा ज्ञान भी व्यक्ति के जीवन में संन्यास घटित कर सकता है। जरूरत है, समझ की, बोध की, प्यास की। हमारी प्यास जितनी बढ़ती जाएगी हमारा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न भी उतना ही तीव्र होता चला जाएगा। एक सज्जन पूछने लगे आप अभी भी दुनिया भर के शास्त्र पढ़ते हैं, स्वाध्याय करते हैं। आप तो इतना कुछ पा चुके हैं फिर भी अध्ययन जारी है। मैंने कहा- 'मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैंने कुछ नहीं पाया, मगर मेरे भीतर अब भी काफी जगह खाली पड़ी है। ज्ञान का कोई पैमाना नहीं है कि 'इतना' पढ़ लिया तो ज्ञान की खोज समाप्त हो गई। ज्ञान का संस्कार तो तभी बना रह सकता है, जब नियमित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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