________________
अज्ञान की स्वीकृति-ज्ञान की पहली किरण
जितनी तेज होगी, हमारी खोज उतनी ही प्रशस्त और साफसुथरी होती चली जाएगी। दूसरा चरण है खोज। जिज्ञासा का अर्थ है सीखने-जानने की प्यास होना। प्यास इतनी तेज होनी चाहिए कि हमारी प्यास ही हमारे लिए पानी का बांध बन जाए। यह मत समझो कि प्यास कीमती नहीं है । प्यास और पानी बराबर महत्त्व के हैं। एक बात हमेशा याद रखिए, पानी का मूल्य प्यास के कारण है। जितनी अधिक तेज प्यास होगी, पानी का मूल्य उतना ही बढ़ता जाएगा। हमारी प्यास ही हमेशा प्रार्थना बनती है, ज्ञान की शुरुआत भी वहीं से होती है। जगा सको तो अपनी प्यास को जाग्रत करो। सामने पानी की टंकी रखी है। आपको प्यास नहीं है, तो उस टंकी का कोई महत्त्व नहीं है और यदि प्यास है तो चुल्लू भर पानी मिलने पर पीने वाला लाख-लाख धन्यवाद देगा।
पानी से अधिक कीमती चीज 'प्यास' है। परमात्मा मूल्यवान है, लेकिन उससे अधिक मूल्यवान है-हमारी स्वयं की प्रार्थना। प्रार्थना जितनी ज्यादा मूल्यवान होगी, प्यास जितनी सार्थक होगी, परमात्मा की मूल्यवत्ता उतनी ही साकार होती जाएगी।
__रेगिस्तान के बीच से एक बस गुजर रही थी। गर्मी काफी तेज पड़ रही थी। लोगों के गले प्यास के मारे सूख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे पानी नहीं मिला तो प्राण निकल जाएंगे। एक स्टाप पर बस रुकी तो लोगों ने इधर-उधर झांका, शायद कहीं पानी नजर आ जाए, मगर वहां सुनसान था। एकाएक एक आदमी एक बाल्टी लेकर बस में चढ़ा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org