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जिएं जीवन-का-दर्शन
मनुष्य जीवन भर सीखता है। उसे अनुभव होते रहते हैं। जो लोग अनुभवों को बटोर लेते हैं, उनका सार निकाल लेते हैं, वे लोग इस संसार से पार हो जाते हैं और जो ऐसा नहीं कर पाते, वे जीवन का पाठ नहीं पढ़ पाते, वे मर-मरकर पुनः इसी संसार की पाठशाला में भेज दिए जाते हैं। पुनर्जन्म का यही तो रहस्य है। तुमने जीवन का पाठ ढंग से नहीं पढ़ा, जागो! दुबारा पढ़कर आरो। और, जिसने जीवन का पाठ पढ़ लिया वह पार हो गया।
आदमी सार एकत्र करे और दुनिया में बांट दे । आपके बच्चे ने गलती की। आपने उसे डांट दिया। क्या कभी यह ख्याल आया कि रात को सोने से पहले बच्चे को अपने पास बुलाकर कहा हो कि देख बेटे ! मैंने 'इस' क्षेत्र में जीवन में 'यह' अनुभव पाया है। तुम इससे सीख लो और जो दुःख मुझे भोगने पड़े, उनसे बचो। आदमी यहीं गलती करता है। वह अपने अनुभव न तो अपने पुत्रों में बांटता है और न ही मित्रों में । बांट इसलिए नहीं पाता क्योंकि अपने अनुभवों के प्रति अभी उसका कोई दृष्टिकोण ही नहीं बन पाया है। जीवन में कदम-कदम पर ठोकरें लगती हैं, आदमी को अनुभव होते हैं, मगर उनके बारे में उसका कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं बन पाता और यही कारण है कि बटोरे गए अनुभव निरर्थक चले जाते हैं।
प्रादमी ने अभी तक अनुभव बटोरे ही कहां हैं ? बीस साल पहले क्रोध किया। कल भी क्रोध किया । आज भी क्रोध कर रहे हो। हमने बीस साल पहले क्रोध में भरकर खिड़की का शीशा तोड़ा था; आज भी एक शीशा तोड़ दिया। शीशा
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