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________________ ११० भगवत्ता फैली सब ओर बनायो। कर्त्तव्य-पथ पर चलते समय पाने वाली अनुकूलप्रतिकूल-हर परिस्थिति के प्रति शान्त मन रहो, प्रसन्न चित्त रहो, यही तप की वास्तविकता है। आत्म-सत्य को जानना, आत्म-सत्य में रमण करना ही सबसे बड़ा तप है। ___ भगवत्ता हमारी मौलिक सम्भावना है। संसार में जहाँ कहीं भी चैतन्य-ऊर्जा है, वहाँ भगवत्ता की पूर्ण सम्भावना है। चैतन्य की परम प्रकाशमान दशा ही हमारी भगवत्ता है । हर कोई उसी भगवत्ता की ओर बढ़ रहा है। आज नहीं कल, कभी-न-कभी अवश्य सब भगवत्ता पाएँगे। आत्म-पूर्णता प्राप्त करना ही दुनिया के मेले में भगवत्ता का महोत्सव है । कुन्दकुन्द से मदद लो और अपनी भगवत्ता के मार्ग पर बढ़ चलो। निमन्त्रण है, स्वागत है, शुभकामनाएँ हैं । प्रणाम है सबको, सबकी भगवत्ता को। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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