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________________ १०० भगवत्ता फैली सब ओर हो गए। यह कैसे हो सकता है। लक्ष्मण राम के बिना जीवित नहीं रह सकता। यह कहकर लक्ष्मण ने भी अपने प्राण त्याग दिए। अब राम में प्रविष्ठ देवता की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। अरे, ये क्या हो गया ? और वह राम का शरीर छोड़कर भागा। राम को होश आया तो पता चला कि लक्ष्मण ने प्राण त्याग दिए। राम ने विश्वास नहीं किया। उन्होंने लोगों से कहा-तुम झूठ बोलते हो। तुम तो उस वक्त भी झूठ बोले थे जब मैंने सीता को वनवास दे दिया था। इसलिए मैं तुम पर तो विश्वास नहीं करूंगा। मेरा लक्ष्मण मर ही नहीं सकता। राम लक्ष्मण के मुर्दा शरीर को उठाए-उठाए छः माह तक इधर-उधर घूमे ताकि किसी भी प्रयत्न से उनमें प्राण जीवित किए जा सकें। काफी समय बाद जब मुर्दा शरीर से दुर्गन्ध आने लगी तो एक साधक ने राम से कहा-'प्रभु ! आप तो अवतार कहलाते हैं। मैं जिस लकड़ी के सहारे चला करता हूँ, वह टूट गई है, आप इसे जोड़ दें।' राम बोले-'भाई टूटी लकड़ी भला जुड़ती है, तुम नई लकड़ी ले लो।' वह साधक बोला-'नई लकड़ी नहीं चाहिए, आप तो इसी को जोड़ दीजिए।' राम ने समझाया- 'बाबा, टूटी लकड़ी कभी सांधी नहीं जा सकती।' अब हँसने की बारी साधक की थी। वह बोला-'तुम तो अवतार हो, तुम यह जानते हो कि टूटी लकड़ी नहीं सांधी जा सकती, फिर जीवन को सांधने की बात Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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