SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ भगवत्ता फैली सब ओर तो एक ही है। सभी माँ की कोख से ही पैदा होते हैं। अवतार भी, तीर्थंकर भी, सभी कोख से ही जन्म लेते हैं । कहीं कोई फर्क नहीं। फर्क केवल विस्तार में है। हम अपने जीवन के अतीत को पढ़ें, तो लगेगा जैसे कोई उपन्यास पढ़ रहे हों। जब कभी एकांत में बैठो तो जन्म से लेकर अब तक के इतिहास को पढ़ना। अतीत को साकार करने का प्रयास करना। जीवन के इस सफर में अनेक लोग मिले। कुछ लोग थोड़े दिन साथ भी रहे, मगर बाद में साथ छोड़ गए। कभी तो ऐसे महापुरुष मिल जाते हैं कि हमारा जीवन सफल हो जाता है। हम सन्तुष्ट हो जाते हैं। कभी पढ़ते-पढ़ते ही आँखें आँसुओं से भर जाएगी, कभी हर्ष होगा । उपन्यास पढ़कर भी ऐसा ही अनुभव होता है। जीवन का प्रतीत पढ़ना जरूर, मगर अपने आपको उस अतीत से चिपका मत लेना। बीत गया सो बीत गया। रीत गया सो रीत गया। बीती बिसार देना, आगे की सुध लेना। अतीत की कमजोरियां निकालना और सोचना आगे जीवन में ये दुबारा न हों और अतीत में न जुड़ें। अतीत से चिपके रहे, तो सारी यादें मानसिक यंत्रणा बनकर रह जाएंगी और हम अपना वर्तमान भी कष्टमय बना लेंगे। अतीत की यादें सुख देती हैं, तो कई बार पीड़ा का अहसास भी करवाती हैं। एक बात तो पत्थर पर खींची Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy