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________________ आत्मवाद : रहस्यमयो परतों का उद्घाटन | ६१ भिन्न होती हैं, 'मुंडे-मुंडे मतिभिन्ना'। कर्म भी सभी जीवों के जुदे-जुदे होते हैं। जिस रूस में साम्यवाद का बोलबाला है, वहाँ पर भी तो अमीर-गरीब हैं । इन जुदे-जुदे तथ्यों के कारण ही सभी को सुख-दुःख को कमी-बेसी रहती है। सुख और दुःख की विषमता ही आत्मा के नानात्व की सिद्धि करती है। बादल के लिए किसान और कुम्हार दोनों अलग-अलग हैं। वह यदि दोनों को एक मान ले, तो दोनों में से एक को खतरा अवश्य है। इसीलिए मैंने कहा कि सभी आत्माए एक नहीं हैं, अलग-अलग हैं। ___ यदि आत्मा को एक माना जायेगा, तो उतार-चढ़ाव, विकासपतन, ज्वार-भाटा, आरोह-अवरोह, बन्धन-मुक्ति एक साथ ही होंगे। जबकि ऐसा नहीं होता। अनेक आत्माएँ मुक्त हो चुकी हैं और अनेक बन्धन में आबद्ध है। तब यह कैसे माना जा सकता है कि आत्मा एक है, अनेक नहीं ? यदि सभी आत्माओं को एक मान लिया जायेगा, तो फिर कौन आत्म-विकास के लिए प्रयास-पुरुषार्थ करेगा? और यदि करेगा भी तो निजी प्रयासों से उसकी मुक्ति भी नहीं होगी। अब, आप ही सोचिये कि कितनी-कितनो भिन्नताएँ हैं। जन्म-मृत्यु की भिन्नता, शरीरों, इन्द्रियों, चैतसिक प्रवृत्तियों की भिन्नता, स्वभाव की भिन्नता, सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों की भिन्नता ये सारी भिन्नताएँ एकात्मवाद के लिए चुनौती है। वस्तुतः आत्मा एक स्वतन्त्र तत्त्व है। विश्व में जुड़वा आत्माएँ नहीं है। जगत् के हर अणु-परमाणु की तरह आत्माएँ भी अपने आप में स्वतन्त्र हैं। कोई किसी के आश्रित नहीं है। जिन दर्शनों के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है, अवयव नहीं, वे आत्म-स्वतन्त्रता को नहीं मानते। उनका कहना है कि जिस प्रकार आग से चिनगारी व्युच्चरित होती है, झड़ती है, वैसे ही ईश्वर से जीव व्युच्चरित होते ह। मेरी समझ से, आत्मा के व्युच्चरण के साथ चिंगारी का उदाहरण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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