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________________ अयोग हो योग का / ३९ को हटा देता है। वह घूघट किसी का भी हो सकता है। मन का भी हो सकता है, चिन्तन-वचन का भी हो सकता है, शरीर का भी हो सकता है। मन, वचन और शरीर के इन तीनों चूंघटों को हटाने के बाद ही आत्मा-परमात्मा के सौन्दर्य का दर्शन होता है। अन्यथा कोई कितना भी सुन्दर क्यों न हो, यदि वह घूघट में है, किसी से आवृत है, तो उसका सौन्दर्य ढका हुआ ही रहेगा। आइंस्टीन जैसों ने किये होंगे आविष्कार-पर-आविष्कार। पर सारे के सारे परकीय पदार्थों का आविष्कार हुआ। दीपक तले तो अंधेरा ही रह गया। स्वयं का आविष्कार कहाँ हुआ ? यदि हम केवल विज्ञान को महत्व देंगे, तो बड़ी भूल करेंगे। क्योंकि बहिरंग ही सब कुछ नहीं है। जैसे अंतरंग से सभी को जुड़ा रहना पड़ता है, वैसे ही अध्यात्म से भी जुड़ा रहना पड़ेगा। जैसा अतरंग होगा, वैसा ही बहिरंग होगा। बहिरंग के अनुसार अंतरंग नहीं हो सकता। जैसा बीज, वैसा फल; जैसा अंडा वैसी मुर्गी। अंतरंग शुद्ध है, तो बहिरंग भी शुद्ध होगा। जो भीतर से अशुद्ध है, वह बाहर से भी अशुद्ध होगा। पर बाहर से अशुद्ध ही हो, यह कोई जरूरी नहीं है। बगुला बाहर से शुद्ध, किन्तु भीतर से अशुद्ध रहता है। इसीलिए यह कहावत प्रसिद्ध है कि "मुख में राम, बगल में छुरी"। बाहर कुछ, भीतर कुछ, कथनी कुछ, करनी कुछ—दोनों में अन्तर, जमीन-आसमान जितना अन्तर। ___ आज का युग विज्ञान-प्रभावित युग है। आदमी बहिर्मुखी होता जा रहा है। जो लोग आत्ममुखता की चर्चाएं करते हैं, गहराई से देखें तो लगेगा कि उनके जीवन में भी बहिर्मुखता है। बहिर्मुखता प्रधान हो जाने के कारण आत्ममुखता गौण होती जा रही है। यदि कोई आत्ममुखी होने के लिए प्रयास भी करता है, तो बाहरी वातावरण उसे वैसा करने में अवरोध खड़ा कर देता है। बहिर्मुखता या बहिरंग से मेरा मतलब केवल बाहरी सुख, वैभव आदि से नहीं है, अपितु हमारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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