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________________ अपने घर में अपना पुस्तकालय हमारी बौद्धिक क्षमता बेहिसाब बढ़ी है किन्तु सही मार्गदर्शन एवं विचारदृष्टि के अभाव में मनुष्य की चेतना विखंडित, विपन्न और घुटन के दौर से गुजर रही है। जितयशा फाउंडेशन आम आदमी के आत्मिक विकास एवं मानसिक शांति के लिए प्रयासरत है। फाउंडेशन श्री चन्द्रप्रभ जी जैसे अध्यात्म-पुरुष के दृष्टिकोण और महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी के मनोवैज्ञानिक वैचारिक पहलुओं को आधार बनाकर जन-साधारण के लिए साहित्य के प्रकाशन एवं विस्तार की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमारा दृष्टिकोण न केवल लाभ-निरपेक्ष है अपितु लागत से भी कम मूल्य में श्रेष्ठ साहित्य को आप तक पहुंचाना है। हमारे पाठकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई है और हमें प्रसन्नता है कि हम भारतीय चिन्तन को ठेठ विदेशों तक पहुँचाने में सफल हुए हैं। __ अपना पुस्तकालय अपने घर में बनाने के लिए फाउंडेशन ने एक अभिनव योजना भी बनाई है। इसके अन्तर्गत आपको सिर्फ एक बार ही फाउंडेशन को एक हजार रुपये का अनुदान देना होगा, जिसके बदले में फाउंडेशन अपने यहाँ से प्रकाशित होने वाले प्रत्येक साहित्य को आपके पास आपके घर तक पहुंचाएगा और वह भी आजीवन । इस योजना के तहत एक और विशेष सुविधा आपको दी जा रही है कि इस योजना के सदस्य बनते ही आपको रजिस्टर्ड डाक से फाउंडेशन का अब तक का प्रकाशित सम्पूर्ण उपलब्ध साहित्य निःशुल्क प्राप्त होगा। यह सूची-पत्र मात्र उपलब्ध पुस्तकों का है। इन पुस्तकों का आप स्वयं तो पठन-मनन करें ही अपने मित्रों को भी उपहार के रूप में दे सकते हैं। इन अनमोल पुस्तकों के प्रचार-प्रसार के लिए आप सस्नेह आमंत्रित हैं। ध्यान/ अध्यात्म/ चिन्तन मनुष्य का कायाकल्प : श्री चन्द्रप्रभ मन और चेतना की विभिन्न गुत्थियों को खोलते हुए ध्यान द्वारा कायाकल्प का एक प्रशस्त मार्गदर्शन । पृष्ठ २००, मूल्य २५/स्वयं से साक्षात्कार : श्री चन्द्रप्रभ मन-मस्तिष्क की ग्रंथियों को खोलने के लिए ध्यान-शिविर में दिये गये अमृत प्रवचन । पृष्ठ १४६, मूल्य १०/निपश्यना और विशुद्धि : श्री चन्द्रप्रभ शरीर, विचार और भावों की उपयोगिता और विशुद्धि के मार्ग दरशाता एक अभिनव प्रकाशन । पृष्ठ ११२, मूल्य १२/ज्योति कलश छलके : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जीवन-मूल्यों को ऊपर उठाने वाली एक प्यारी पुस्तक । भगवान् महावीर के सूत्रों पर विस्तृत विवेचन । पृष्ठ १६०, मूल्य २०/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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