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शिष्यों, तुम क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो । महावीर ने अपने संपूर्ण दर्शन में समय पर जोर दिया है ।
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महावीर कहते हैं। 'क्षण भर का प्रमाद भी तुम्हें डुबो देगा आपने पूरा समंदर पार कर लिया, खुद को जाग्रत रखा, लेकिन जैसे ही, किनारे पर आए, प्रमाद किया और डूब गए। तूफान उठा, नैया डूब गई । सात समंदर पार करके भी कुछ हाथ न लगा। अस्सी साल का जीवन जीकर भी जीवन को उपलब्ध न हो पाए तो जीने का क्या अर्थ हुआ? आपने बीस साल जीकर भी उपलब्धता हासिल कर ली तो सार्थक हो गया जीवन । उस अस्सी साल जीने वाले से आप बेहतर स्थिति में हैं। अगर हमें गधे का सौ वर्ष का जीवन मिले तो भी क्या काम का ? इसकी जगह शेर का दो दिन का जीवन ही उपलब्धि-मूलक हो सकता है ।
मरने की कोई भी तिथि हो सकती है। सोमवार को मरे या शनिवार को, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जीवन को उपलब्ध किए बगैर मर गए तो फर्क पड़ जाएगा। भीतर जो तत्त्व है उससे साक्षात किए बिना मर गए तो फिर निश्चित तौर पर वह मृत्यु होगी । हर मृत्यु पुनर्जन्म की यात्रा बनती है। कहते हैं कि जब महावीर के निर्वाण की वेला आई तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य गौतम को बुलाया । महावीर ने गौतम से कहा कि तुम अमुक गांव चले जाओ, वहां मेरा शिष्य सोमदत्त रहता है। तुम उसे उपदेश देकर, सम्यक्त्व प्रदान कर आओ ।
महावीर ने अपने निर्वाण के समय प्रिय शिष्य को दूर भेज दिया। क्योंकि मृत्यु के समय जो जितना करीब होगा वह उतना ही जोर से छाती पीटेगा। वह सबसे ज्यादा मातम मनाएगा । इसलिए मृत्यु के समय अपने निकटस्थ लोगों को अपने पास मत रखो उल्टे दूर के लोगों को अपने पास बुला लो । लोग मृत्यु के समय जो उसके करीब के होते हैं, उन्हीं को याद करते रहते हैं । प्रेत-योनि में वही लोग जाते हैं। जो किसी की यादों को विकृत रूप से साथ लेकर मरते हैं । ऐसे समय भगवान को याद करले तो उसका बेड़ा पार हो जाए । मृत्यु तभी धन्य है, जब मृत्यु हो, प्रभु करे, उससे पहले निर्वाण हो जाए ।
इसीलिए भगवान महावीर ने निर्वाण के समय गौतम को अपने से दूर कर दिया । जब गौतम सोमदत्त को उपदेश देकर लौट रहे थे तो
समय की चेतना / ६४
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