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________________ सकेगा। चारित्र्य की पूजा करने की बजाय, उसे स्वीकार करो। इसीलिए कहता हूं कि अगर जीने की कला आ जाए तो माटी फूल बन सकती है और गंदगी सुगंध बन सकती है। व्यक्ति हमेशा वैसे ही कृत्य करता है, जैसे विचार होते हैं। कोई व्यक्ति क्रोध करता है तो इसमें उसका दोष नहीं है, उसके भीतर क्रोध ही भरा है। वह गालियां देता है, इसका मतलब है, उसके भीतर गालियां भरी हैं। जिसके पास जो चीज होगी, वह वही तो देगा। भीतर की गंदगी ही तो बाहर आती है। आपने शराबी को देखा तो है; शराब पीने के बाद उसे मां भी मां नजर नहीं आती। जब वह बोलने लगेगा तो आप देखेंगे कि इतना भला आदमी नजर आ रहा था, लेकिन भीतर तो कचरा भरा पड़ा है। शराब व्यक्ति के असली छुपे चरित्र को अभिव्यक्ति देती है। ___ आदमी प्रायः दोहरा जीवन जीता है। भीतर कुछ और बाहर कुछ। यह बात हर आदमी जानता है कि उससे मिलने आने वाले के मन में वास्तव में क्या है। ऊपर से तो वह आपके चरणों में धोक लगा रहा है, मगर भीतर ही भीतर गालियां दे रहा है। ऊपर से ही प्रणाम हैं, अंतत्मिा में गालियां ही हैं। कृपा कर औरों में कमियां मत ढूंढो। उसकी कमियां उसको मुबारक। तुमने दूसरे में कमियां तफ्तीश की, यानि तुममें कमी है। तुम्हारे स्वभाव में यह कमी है कि तुम औरों में कमियां ढूंढते हो। इन काले चश्मों को पहनने की आदत छोड़ो। काले चश्मों को पहनकर तो तुम हंस को भी कौए की ही नस्ल का समझ बैठोगे। गुणवान् बनो। गुणों पर केन्द्रित होओ। गुणात्मक दृष्टि रखो। आप किसी व्यक्ति में विशेषताएं ढूंढने का प्रयास करेंगे तो आपको विशेषताएं ही विशेषताएं नजर आएंगी और आप कमियां ढूंढने लगेंगे तो वही व्यक्ति कमियों का भंडार नजर आएगा। मेरे पास धर्म और अध्यात्म की खोज में आओगे तो तुम्हें यहां अध्यात्म की अनूठी आभा दिखाई देगी, यदि संसार को ढूंढोगे तो एक भरा-पूरा संसार दिखाई देगा। जिसका निवास भीतर के आकाश में हो, जो मौन की सत्ता में जीता हो, उसकी एक मुस्कान से चांद खिल उठता है, दूसरी से सूरज और तीसरी से धरती के फूल । अगर इस रहस्य को न समझ पाये, तो तुम्हें अहोभाव जनित मुस्कान चेतना का रूपान्तरण / ४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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