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________________ माटी का भगवान् बनाना हो, उसे देवालय में बैठाना हो, तो लाखों-करोड़ों का चढ़ावा बोल देंगें, पर जीवित भगवान बनाना हो तो? - जीवित भगवान् बनाने के प्रति कहाँ जागरूकता है? रंगीन पत्रिकाओं को छपाने में अनाप-शनाप खर्च हो रहा है, सृजन का रूप दिखाई नहीं देता। अपरिग्रह, मुनि लोगों का तो प्रमुख व्रत है। एक दृष्टि से तो ब्रह्मचर्य से भी ज्यादा प्राथमिक। पर ऐसा कौन-सा संत है जिसका पैसे से संबंध न हो! संभव है, कायिक संबंध न हो, पर मानसिक और वाचिक तो है ही। अपने पास न रखा, तो क्या हुआ, औरों के पास रखवाया सही। अपरिग्रहियों के परिग्रह को कभी देखा? जो जितना नामजद, जिसके जितने भक्त, जितना संपर्क, उसके परिग्रह का उतना ही विस्तार। ___ कल एक सज्जन कह रहे थे मंदिर में पैसा चढ़ाओ, उससे तो अच्छा है कि गरीबों को दो। तुम जो कहो, तुम्हारी मौज, पर तुम गरीबों की भी सेवा कहाँ करते हो। मंदिर में चढ़ाने से तो तुम बच जाते हो, पर गरीबों को भी नहीं दे पाते। मूर्ति के अभिषेक को तो तुमने पत्थर पर पानी डालना बता दिया। कहने लगे, 'पाहन पूजे हरि मिलैं तो मैं पूजू पहाड़।' पर मैं पूडूंगा तुम कितनी बार झुग्गी-झोपड़ी में गये। किसी मैले-कुचैले लड़के को पाट पर बिठाया, उसे अपने हाथों से नहलाया। उसे नये कपड़े पहनाकर उसकी आंगी की? तुम करते-धरते कुछ नहीं, बस बचने के रास्ते भर निकाल लेते हो। चाहे तुम मूर्ति में भगवान मानो या मूर्ति के बाहर पर कृपा कर उसे फुटबॉल की गेंद मत बनाओ। जो मानना है, उसे दृढ़ता से मानो और जो माना है, उसे दृढ़ता से करो। बगैर क्रियान्वित हुए तो तुम मार्गी नहीं, उन्मार्गी ही हुए। रास्ते तो बहुतेरे हैं, पर चलो तो सही।। बातों के बादशाह करने के नाम पर कंगले होते हैं। यह गज़ब विरोधाभास है। गंदगी ऐसे तो सुगंध नहीं बन सकती। इन तरीकों से, मापदंडों से तो कतई नहीं। जिस ढंग से हम जीते चले जा रहे हैं, उससे तो माटी फूल नहीं खिलाएगी। हमने अपने जीवन को चलाने के जो प्रतिमान बना लिए हैं या जिनकी हम दुहाई देते हैं, उनसे तो बांस की पुंगरी स्वर-लहरियां नहीं बिखेरेंगी। चेतना का रूपान्तरण / ४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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