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________________ पर मंदिर की सीढ़ियों के पास दो-दो पैसे भीख मांगते आदमी का पेट भरवाने की व्यवस्था करवाना परमात्मा के स्वर्णाभिषेक से कम कीमती नहीं है। वैभवशाली पूजा-स्थलों के सामने खड़ा भूखा-बेसहारा इंसान! मनुष्य की परमार्थ-प्रक्रिया पर इससे बड़ा व्यंग्य क्या होगा? कई लोग किसी प्रतिमूर्ति को बैठाने के लिए लाखों-करोड़ों का चढ़ावा बोल जाते हैं। किसी परम्परागत स्वीकृत वस्तु को 'दर्शन' कराने या माला पहनाने के लिए धन खर्च करने की होड़ लगाना, जलसों में हाथी-घोड़ों की ऐश्वर्यभरी कतार दिखाने के लिए अनाप-शनाप खर्च करना; जो ऐसा करते है, यह उनकी मौज! पर ऐसे लोग रुग्ण मानवता की कितनी सेवा कर रहे हैं? अस्पतालों, अनाथालयों, विकलांग-केन्द्रों में अपने तन-मन-धन का कितना अवदान दे पाते हैं? हां! मानवता की सेवा और उत्थान की बातें तो चाहे जितनी करवा लो, पर कृत्य के स्थान पर केवल दिखावा है। हर पूजा, पूजा-पद्धति और पूजा-स्थल का अपना महत्व है, आवश्यकता है, पर इनका महत्व और बढ़ सकता है यदि हमारे मन में जीवन के प्रति सम्मान जगे। फिर हम इनका उपयोग भी जीवन के लिए करेंगे, न कि अपने स्वार्थ के लिए या परलोक को सुधारने के लिये। हम धर्म के क्रिया-कांडों में तो गहराई तक गये। सूक्ष्म-से-सूक्ष्म तत्त्व को भी पकड़ा, चींटी को बचाने की काफी कोशिशें की गईं पर मनुष्य .....! मेरे देखे, मूल जीवन से धर्म फिसल गया। तप खूब हुआ, पर उससे क्रोध-कषाय का कूड़ा-कर्कट नहीं जला। भिक्षु का काषायवस्त्र तो सदा ओढ़ा जाता रहा, पर अन्तर के कषाय नहीं छूटे । आराधना खूब हुई, पर पाप से प्रतिक्रमण नहीं हुआ। हमने केवल अपने पुत्र की चिंता की, औरों के लिए दवा में मिलावट, घी में मोम, मैदा और चर्बी मिलाने में एक नन्ही-सी हिचकी भी नहीं खाई। मछलियां सूखी थीं, इसलिए उनकी कलचक्की में पिसाई को बुरा न माना। भैंसे-बकरे हमने तो नहीं काटे, इसलिए चमड़े का आयात-निर्यात बेझिझक स्वीकार किया। अंडा खाना और शराब पीना तो आम हो गया है। मैं पूडूंगा, तुम जब चींटी को बचाना चाहते हो, तो अपने को मारने पर क्यों तुले हो? चींटी को नुकसान पहुंचाना अहिंसा का उल्लंघन है, तो अपने को नुकसान पहुंचाना अणुव्रतों का अतिक्रमण नहीं है? तुम सिगरेट तम्बाकू खा-पीकर अपनी ही धमनियों में जहर भर मानव हो महावीर | ३३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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