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________________ कर्मजात । जन्म से हिन्दु माना तो आप जन्मजात हिन्दु हुए। ऐसे लोग हिन्दु होकर भी बूचड़खाना चलाएंगे। दूसरी ओर कर्मजात हिन्दु एक चींटी को भी पांव के नीचे नहीं आने देंगे। हकीकत तो यह है कि हिन्दुस्तान में हिन्दु लोग भी मांस भक्षण करने लगे हैं। अगर हिन्दु लोग बूचड़खानों में शरीक होना बंद कर दें तो दूसरों के पास इतना धन ही कहां है कि वे बूचड़खाने चला सकें। शाकाहारी जातियों में भी आजकल मांस भक्षण का फैशन होने लगा है । मांस खाने वाला पशु- वध करने वाले से अधिक दोषी है। उसे अधिक दोष लगता है। माना वह पैसे वाला होगा, पर यह पैसे का दुरुपयोग है, आत्म-समानता का शोषण है । आप गौर करें तो पाएंगे कि एक अपरिग्रही समाज के पास जितना परिग्रह है, उतना एक परिग्रही समाज के पास नहीं है । जितनी हिंसा, ये तथाकथित अहिंसक लोग करते हैं, उतनी और लोग नहीं करते। मनुष्य के चेहरे दो तरह के होते हैं - एक सार्वजनिक, दूसरा निजी। हर आदमी ने मुखौटा लगा रखा है। आदमी खुद को कभी बुरा नहीं कहेगा । भीतर कितनी ही बुराइयां भरी हों वह अपने को अच्छा ही कहता रहेगा । ऐसा आदमी मिलना मुश्किल है जो यह कह दे कि मैं बुरा हूँ, मुझमें अमुक-अमुक बुराइयां हैं। आज तो भलाई और बुराई की पहचान यही रह गई है कि कोई आदमी अपने को भला कहे, वह तो बुरा और जो बुरा कहे वह भला । जो चोर नहीं है वह कहता है कि मैंने चोरी की है और जो असली चोर हैं, वे कहते हैं कि हम अचौर्य व्रत का पालन करते हैं । एक पाकेटमार ने किसी की जेब काटी उसे तो हम चोर कहेंगे, लेकिन उस मजिस्ट्रेट को क्या कहेंगे जिसने उस चोर को फंसाने के लिए नियमों का उल्लंघन किया। खुद रिश्वत खाई । वह तो बड़ा चोर हुआ। बड़े चोर हमेशा कटघरे से बाहर रहते हैं। छोटे चोर पकड़ में आ जाते हैं । साहूकार तो मजिस्ट्रेट या वकील की जरूरत ही न समझेगा । वकील वही रखता है जो खुद चोर होता है। वकील तो वह अपनी बात को सजाने-संवारने के लिए करता है । फिर रिश्वत भी खिलानी पड़ती है। आदमी के दो चेहरे हो गए हैं - एक निजी, दूसरा सार्वजनिक । यहां मेरा सार्वजनिक चेहरों से कोई मतलब नहीं है । उसके Jain Education International For Personal & Private Use Only मानव हो महावीर / १३ www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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