SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बातें राम-रहीम के बारे में, महावीर-कबीर के बारे में, मीरा-मलूक के बारे में, परमात्मा के बारे में, सम्बोधि-धर्म के बारे में करने की सार्थकता होगी। पहली बात तो यह है कि यदि आप हिन्दु कुल में पैदा हुए हैं, मात्र इसलिए राम के प्रति श्रद्धा रखते हैं, तो आपकी श्रद्धा मौलिक फूल नहीं खिला पाएगी। आप जैन कुल में पैदा हुए हैं, इतने मात्र से महावीर के प्रति आस्था रखते हैं, तो वह आस्था अध्यात्म का शिखर नहीं बन सकती। यदि कोई बौद्ध वंश में पैदा हुआ है, मात्र इसलिए बुद्ध के प्रति विश्वास रखता है, तो ऐसा विश्वास बोधिसत्व की करुणा को जन्म नहीं दे सकता। जैन कुल में पैदा हो गए सिर्फ इसलिए महावीर के प्रति श्रद्धा नहीं रखनी है। इसमें महावीर की कोई विशेषता नहीं है। यह विशेषता तो तुम्हारे कुल की हुई। जब महावीर के प्रति श्रद्धा सिर्फ महावीर होने के कारण होगी, तभी सार्थक होगी। तब ऐसा होगा कि तुमने वास्तव में महावीर की विशेषताओं को अंगीकार किया है। ऐसे लोग बहुत मिल जाएंगे, जो जैन कुल में पैदा नहीं हुए हैं परन्तु महावीर के प्रति श्रद्धा रखते हैं। महावीर के मंदिर के आगे से गुजरते हुए जैनों का सिर इतनी जल्दी नहीं झकेगा, लेकिन जिसे आप अजैन कहते हो, उसका सिर जरूर झुकेगा। जैन कुल में पैदा होने वाले की महावीर के प्रति आस्था की बजाय उसकी आस्था अधिक बलवान होगी जो जन्मजात जैन नहीं है। ऐसे आदमी की आत्मा अधिक जीवंत कहलाएगी। बीते युगों में जो भी महापुरुष हुए, तुम उनके बारे में पढ़ो, उन्हें समझो। तुम्हारे जीवन और विचारों से वे दस-बीस फीसदी मेल खाते हैं या नहीं, इस पर ध्यान दो, तुम्हें जो जचे, उस पर श्रद्धा करो। जिन्हें पढ़ने से, जिन्हें देखने से तुममें कुछ बदलाव आये, कुछ रूपान्तरित होने लगे, उनको अपनी श्रद्धा समर्पित करो। श्रद्धा कोई दो कौड़ी की चीज नहीं है कि जिसे चाहे उसे समर्पित कर दी जाये। प्रणाम सबको हो सकता है, पर श्रद्धा के मायने हैं तुमने अपनी आत्मा अर्पित की, जिसके चरणों में तुम निःशेष हुए।। मैं जैन कुल में पैदा हुआ, पर मुझे बुद्ध से अनुराग है। उनका मध्यम मार्ग मुझे मानवता के काफी करीब लगता है। मैं जीसस को भी मानव हो महावीर / १० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy