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________________ निसीहि : मानसिक विरेचन की प्रक्रिया उस भटकाव को रोकने का साधन है। निसीहि यानी कि आत्म-विरेचन है। निसीहि यानी कि मस्तिष्क-शुद्धि है। निसीहि यानी निर्विकल्प समाधि है। निसीहि यानी संसार में जिन-जिन से भी सम्बन्ध है, उन-उन से मुक्ति-बोध पाने का माध्यम है। निसीहि यानी स्वयं की स्वयं में वापसी। प्रतिक्रमण, पर्युषण और प्रत्यावर्तन ये सब निसोहि को ही उपलब्ध होने के माध्यम हैं। सचमुच, भगवान तक और आत्मा तक पहुँचने का रास्ता निसीहि ही है । निसीहि होने के पश्चात् शेष रहता है मात्र अतीन्द्रिय सुख । यानी आत्म-जात निराकुल और द्वन्द्वातीत सम्यक् आनन्दानुभूति । सब कुछ आ गया इस निसीहि में। निसीहि गुप्तिधर्म से भी श्रेष्ठ है। उत्तराध्ययन सूत्र आदि में अष्टप्रवचनमाता का विधान है। पांच समिति और तीन गुप्ति-ये हुई अष्ट प्रवचन माता । समिति है यतनाचारपूर्वक प्रवृत्ति और गुप्ति है समितियों में सहयोगी मानसिक वाचिक और शारीरिक प्रवृत्तियों का गोपन। जबकि निसीहि में, पहले गुप्ति काम करेगी। मतलब यह है कि पहले सभी प्रवृत्तियों का गोपन करो और तत्पश्चात् प्रवृत्तियों का विरेचन करो। निसीहि रूपी राजहंस के द्वारा अशुभ और शुभ प्रवृत्तियों को अलग-अलग करो। पानो अलग, दूध अलग - प्राचीन भारतीय न्याय पद्धति की तरह । शुभ प्रवृत्तियों का दीपक जीवन से जोड़ें, ताकि अशुभ प्रवृत्तियों का अन्धकार समाप्त हो। तत्पश्चात् समिति-आश्रित बनें यानी यतनाचारपूर्वक, उपयोग और विवेकपूर्वक प्रवृत्ति करें। तो सर्वस्व समाहित है निसीहि में। साधना के वृक्ष की जड़ों को सुरक्षित करने वाला है यह । ताकि बहिरात्मा के दीमक उसे भीतर ही भीतर खोखला और श्रीशून्य न कर दे । आदमी यदि इसे समझ जाये तो उसे बहुत कुछ मिल गया। मूल सूत्र उसने हस्तगत कर लिया। किन्तु लोग मन्दिर में जाते हैं, कूड़े-कचरे के साथ । साधना-वृक्ष का सिंचन करते हैं, दीमकों के साथ। ___ आप सुनते होंगे कभी कभी कि अमुक साधु वापस गृहस्थ हो गया। आखिर क्या कारण ? मूलतः जब उसने सन्यास धारण किया था, उस समय या तो भावावेश था या फिर अन्य कोई कारण । और, जिस आदमी ने दीक्षा में सच्चा निसीहि किया, संसार और मनोगति की सच्ची समीक्षा की, विकल्पों का विरेचन करके दीक्षा का सम्यक संकल्प किया, वह आदमी कभी पथच्युत नहीं हो सकता। दुर्भाग्य या दैव. विडम्बना हो, तो अलग बात है आर्द्र कुमार आदि की भाँति । मैं सुनता हूं मन्दिर में बहुत बार कि लोग एक तरफ तो हाथ से भगवान की पूजा करते हैं और दूसरी तरफ मुंह से बिदाम की कतलियों की बातें करते हैं। विरेचन न होने के कारण लोगों को मन्दिर में भी कतलियाँ राजभोग जैसी चीजें याद आती हैं। लोग मन्दिर में बातें करते हैं शादी-विवाह की । तुम्हारा पुत्र कितना बड़ा है ? बीस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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