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पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
पड़ रही है। बहुत बार तो हमें ऐसा लगता है कि आज हम यदि पदयात्रा न करें तो इस सीनरी से वंचित रह जायेंगे। कहाँ भीड़ से संकुल यात्रा और कहाँ नीरव तथा पदयात्रायें। वाहन यात्रा तो पराधीनता है और पदयात्रा स्वाधीनता है। जब इच्छा चल पड़े। वाहन यात्रा में ऐसा नहीं होता। जब ट्रेन अथवा हवाई जहाज का समय है उसी समय हमें जाना पड़ेगा। पदयात्रा अरे ! जब इच्छा हुई निकल पड़े। कहते हैं न, बहता पानी रमता जोगी। जब उसकी इच्छा हुई रमण करने के लिए चला गया निकल पड़ा। इसमें किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करनी पड़ती और दूसरे में वाहन यात्रा बड़ी खर्चीली यात्रा है। बड़ा खर्चा लगता है उसमें और साधु, सन्त, साधु को तो वाहन यात्रा करनी ही नहीं चाहिए। क्यों ? क्योंकि जो व्यक्ति वाहनयात्रा करेगा उसे पैसा रखना ही पड़ेगा। पैसा कमाने के लिए, पैसा जुगाड़ करने के लिए कोई न कोई अटकलबाजी लगानी ही पड़ेगी। बिना अर्थ के वाहन-यात्रा नहीं हो पायेगी।
अत्थो मूलं अणत्थाणं यह आगम वाक्य है। अर्थ अनर्थ का मूल है अतः एक अपरिग्रही और अहिंसक साधक के लिए अर्थ जुटाना न केवल उसके चरित्र सम्बन्धी पतन का माध्यम होगा अपितु उसे पूजीपति और सेठ साहुकारों का आश्रय भी स्वीकार करना पड़ेगा। वह पराधीन हो जायेगा। उसका स्वावलम्बीपन और निरपेक्षता पूर्ण जीवन वाहन यात्रा में बिलकुल खतम हो जाता है अहिंसा का महान आदर्श धूमिल हो जायेगा। ऐसी स्थिति में वह साधक या साधु नहीं रहेगा अपितु सांसारिक वृत्तियों में रचा-पचा गृहस्थ ही होगा। यह तथ्य हम दशवैकालिक सूत्र में देख सकते हैं। आज हमें कोई अपेक्षा नहीं है। ठीक है, मार्ग में सुविधा न होने के कारण पदयात्रियों को अपनी व्यवस्थायें करवानी पड़ती है। इतना होते हुए भी वह स्वावलम्बी है, निरपेक्ष है। आपने नहीं दिया कोई बात नहीं, हमारे तो 'माई-माई बहुत ब्याहीं', आगे फिर देखेंगे। चलते चलो
मञ्जिल वञ्जिल पूछे कौन, चलो जहां तक रस्ता जाए।
घाट का पानी घाट लगे और बहता पानी बहता जाए।
बढ़ते चलो आगे चलते ही चलो। जो साधक अध्यात्म जगत में रमण करता है। उसके लिए तो मैं जहाँ तक सोचता हूँ पदयात्रा ही उचित और युक्त है। अन्यथा समाज को भी घाटा, हमको स्वयं को भी घाटा पर कल्याण के लिए यदि हम वाहन को अपनाते हैं, तो हमारे लिये पर कल्याण के लिए भी बाधक है, स्वकल्याण में भी बाधक है।
मैं आपसे कहूंगा कि अरे भाई ! मुझे यहाँ से दिल्ली जाना है हवाई जहाज में। पन्द्रह सौ रुपया टिकट दर है, व्यवस्था कर देना। वे किसी भी हालत में नहीं करेंगे। कोई भी नहीं करेगा और हम कह देंगे हम यहाँ से दिल्ली जा रहे हैं। दस हजार का खर्चा है पदयात्रा से जायेंगे। दस क्या पन्द्रह लगेंगे तो पन्द्रह की भी
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