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पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
है वह दिल्ली में भी मिल जायेगी। लेकिन ग्रामीण सभ्यता को पहचानना है तो हमें गाँवों-गांवों में पर्यटन करना होगा। धर्म-कर्म शहर में थोड़े ही है; यहाँ तो दिखाना अधिक है। असली धर्म तो गाँवों में है।
आज हम, मैं अपने ऊपर ही कहता हूं यदि विमान यात्रा करता हूं तो उसमें कितने लोगों को घाटा होगा । मुझे दिल्ली से कलकत्ता आना है। हवाई जहाज में चढ़ा यहाँ पहुँच गया। मार्ग में कितने ही गाँव आये हैं, जितने भी धर्म अनुयायी हैं सब हमसे अछूते रह गये और हम उनसे अछूते रह गये । हमारी जाति अस्पृश्य जाति हो जायेगी। वे बिचारे गाँव गाँव में रहने वाले कब मुनियों का सत्संग कर पायेंगे। पदयात्रा ही ऐसा साधन है जिनके द्वारा उन्हें उनके धर्म का उपदेश मिल जाता है इनके गुरुओं का दर्शन हो जाता है उपदेश मिल जाता है। वे हिन्दू है तो उन्हें ज्ञात हो जाता है कि हिन्दू धर्म क्या है और हम हिन्दू हैं और यदि वे जैनी हैं तो उन्हें यह बोध हो जाता है कि हम जैनी हैं और हमारा जैन धर्म क्या है। आपको सच्ची श्रद्धा गांव में ही मिलेगी। हमारे आचार और विचार की गंगा यमुना को गांव गाँव में प्रवाहित करने वाली है यह पद यात्रा।
इस पद-यात्रा के बहाव ने कितने-कितने लोगों के पापों का प्रक्षालन किया है बड़ी प्रभावना हुई इस पद-यात्रा के कारण भारतीय संस्कृति की। एक पदयात्री साधक हजारों-हजारों लोगों को निर्मल करता है। यह ठीक वैसे ही जैसे एक दीपक से हजारों दीपक जलाये जाते हैं। मेरी एक कविता है कि
ज्योति से ज्योति अगिन ज्योतियां, बढ़ता यों ज्योतित संसार । नदी से नदी असीम नदियां, निर्मित उससे पारावार । ज्योति ज्ञान की, नदी प्रेम की, स्पर्श करें धारा में धार । कहां रहेगा तमस्-राज्य फिर,
अकाल-पीड़ा बारम्बार ॥ पद-यात्रा में ज्ञान की ज्योति और प्रेम की सरिता घर-घर पहुंचाई जाती है। पद-यात्रा के द्वारा एक-एक को सुधारने का प्रयास किया जाता है। 'कहाँ रहेगा तमस्-राज्य फिर'-अन्धियारे का प्रभुत्व तमसावृत्त वातावरण हर घर से हटाने का माध्यम है पद-यात्रा।
यदि हम पद-यात्रा को छोड़ देंगे तो हमें बहुत-बहुत घाटा होगा। नुकशान ही नुकशान होगा फायदा कुछ नहीं होगा शहर वालों को तो घण्टाभर क्यों, चौबीस के चौबीस घण्टे समझा दो लेकिन चौबीस घन्टे के बाद तो जैसे ही अपनी दुकान में
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