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________________ आचार व्यवहार हो देशकालानुरूप ४१ इस तरह हम कोई भी प्रथा को ले लें देश और काल के अनुसार न केवल आचार और व्यवहार में अपितु हर चीज में परिवर्तन आया ही आया है। लेकिन वह परिवर्तन तभी करना चाहिए जब उस परिवर्तन के द्वारा उसका भविष्य कुछ लाभदायक सिद्ध होता हो। केवल नवीनता के आग्रह में अपनी प्राचीन परम्परा को तोड़ देना भी अच्छा नहीं है। पुराना हमेशा कूड़ा-कचरा होता है, यह बात कहनी भी अच्छी नहीं है। आजकल विज्ञान को पूर्णरूपेण सही कहना यह भी बात अच्छी नहीं है यदि अणुबम या चार सौ बीस टन का एक हाइड्रोजन बम गिर जाय तो जो आदमी विज्ञान को अच्छा बताते हैं वे लोग ही भस्म हो जायेंगे और शेष लोग विज्ञान का नाम सुनते ही काँप उठेंगे। नवीन चीज हमेशा अच्छी नहीं होती और पुरानी चीज हमेशा बुरी नहीं होती लेकिन पुरातन का मोह भी अच्छा नहीं है और नवीनता का आग्रह भी अच्छा नहीं होता। एक समय होता है जब वर्षा होती है तो अच्छा लगता है। चारों तरफ अकाल है, सूखा पड़ गया है उस समय यदि वर्षा होती है तो वर्षा उपयोगी है। उस समय वर्षा किस काम की जब चारों तरफ बाढ़ ही बाढ़ आयी हुई हो। समय के अनुसार ही वर्षा अच्छी लगती है। होली के दिन लोग रंग डालते हैं। वह होली के दिन ही अच्छा लगता है। दीपावली के दिन उन रंगों से सने हुए वस्त्र यदि कोई पहनता है तो वे रंग भरे वस्त्र बड़े बुरे लगते हैं। शिव अपने समय ही कल्याणकारी होता है, जब वह बिगड़ जाता है तो बड़ा प्रलय मचा देता है। उसका तांडव नृत्य संसार के लिए बड़ा विनाशकारी हो जाता है। अत: देश और काल के अनुरूप ही प्रत्येक चीज में परिवर्तन होता है। देश और काल के अनुरुप ही प्रत्येक कथन में परिवर्तन होता है। यदि परम्परा अच्छी नहीं है तो उन्हें तोड़कर नये को ग्रहण कर लेना चाहिए। ____अब बहुत से लोग ऐसे भी है जो नयी चीज अच्छी होते हुए भी नयी चीज को ग्रहण नहीं करते बस पुराने को ही पकड़े रहते हैं। यह यथार्थतः दुराग्रह है। जिस व्यक्ति की आँखों पर दुराग्रह की पट्टी बन्धी है, उसे वास्तविक तथ्य का सम्यक् दर्शन नहीं हो सकता। इस पट्टी को बाँधकर चलना भूल-भुलैया के अन्ध गलियारों में भटकना है। इसलिए सत्य के राजमार्ग को पाने के लिए उबरना अनिवार्य है। सारहीन को परित्याग करने में उलझन नहीं होनी चाहिए। जैसे शरीर भोजन लेता है साथ ही उत्सर्ग करता है। अगर ऐसा न हो तो शारीरिक क्रियाएँ नहीं हो सकती, बन्द हो जाएगी। बचपन में जो पैन्ट-कोट पहनते थे, उन्हीं को सारे जीवन में नहीं पहना जा सकता। नया पैन्ट-कोट सिलाना ही पड़ेगा। नयी चीज अच्छी है तो उसको भी ग्रहण करना पड़ेगा। नई चीज हमेशा बुरी नहीं होती, उसमें हैं कोई अच्छी बात भी होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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