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________________ महावीर समाधान के वातायन में वह व्यक्ति चकित हुआ। उसने कहा कि तेरी बहिन की समस्या है कि जलवृष्टि रुक नहीं रही है, और तुम्हारी समस्या है कि जलवृष्टि नहीं हो रही है। अब मेरे लिए यह समस्या उपस्थित हो गयी है कि मैं इन्द्र को किसके लिए प्रार्थना करूं जल-वृष्टि की या वृष्टि-अवरोध की? क्योंकि मेरे लिए तो तुम दोनों समान होएक तराज के दो पलड़े। मैं नहीं जानता कि इस समस्या का समाधान स्वयं देवेन्द्र भी कैसे करेंगे क्योंकि उनके पास एक साथ दो परस्पर विरोधी प्रार्थनाएं पहुंच रही हैं ? इसे कहते हैं समस्या । समस्या को सुलझाना ही समाधान है। भगवान् महावीर का युग समस्याओं का मकड़ी-जाल था। जनता उस जाल में उलझी हुई थी। वह मुक्ति-बोध पाने के लिए मार्ग ढूढ रही थी, मगर वह जैसे जैसे मार्ग खोजती वैसे-वैसे और उलझ जाती-भूल-भूलया के अन्ध गलियारों में। वास्तव में, उन्हें जरूरत थी एक सशक्त और प्रबुद्ध मार्गदर्शक की। भटके को राही का सहारा डूबते को तिनके का सहारा। सौभाग्य ही समझिये, जनभाग्य का नया सूर्योदय कि महावीर मिल गये जनता को। वह महावीर जिसने युग की पीड़ा को समझा, जनता की व्याकुलता को महसूस किया। इसीलिये उन्होंने मकड़ी-जाल में फंसी जनता को मुक्त करने के लिए और पथच्युत हो रहे आचार तथा दर्शन को सही-सलामत रखने के लिए अथक प्रयास किया; अन्यथा उस साधक को क्या जरूरत जो साधना के प्रारम्भ से लेकर साध्य-सिद्धि तक बिल्कुल मूक रहा, निर्वस्त्र रहा, समाज से असंयुक्त बना रहा। विश्व-मन्दिर का जीर्णोद्धार करने के लिए महावीर ने अन्ततः पूरा प्रयास किया। महावीर तो वह देहरी का दिया है, जिसने भीतर और बाहर दोनों को आलोकित किया। जीवन की समस्या और जीवनेतर समस्याओं का समाधान देने वाला ही वास्तव में विश्व का, जन-जन का भगवान् है, अखिल ब्रह्माण्ड का अनुशास्ता है। महावीर ने एक-एक समस्या को खोजा, युग के और जग के हर कोने-कांतर में जाकर । उन समस्याओं में वे जिये । विश्व की समस्याओं को अपनी समस्या माना और उसके लिए समाधान खोजे । खोज उपलब्धि की प्रक्रिया है। जिन खोजा, तिन पाइयाँ'। पहले समस्या, फिर समाधान । पहले प्रश्न, फिर उत्तर । पहले अर्जुन, फिर कृष्ण । अर्जुन समस्या है और कृष्ण उस समस्या के समाधानकर्ता । कृष्ण अर्जुन के भीतर है-दूध में मक्खन की तरह । गीता कृष्ण की अभिव्यक्ति है। समाधान की फलश्रुति गीता है। महावीर समाधान-गीता के प्रणेता हैं उनका हर समाधान अपने-आप में गीतास्वरूप है। कृष्ण ने एक अर्जुन की समस्या को समाधान दिया और महावीर के लिये हर इन्सान अर्जुन था। इसीलिए जैनों के पास गीता जैसे अनेक ग्रन्थ हैं। अब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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